________________ 13 शतके श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 1002 // | उद्देशक:२ देवाधिकारः। सूत्रम् 473 चतुर्निकायदेवभेदप्रभेद | प्रत्येकानामावासैकसमये | उत्पादोद्वर्तना तेषु 48-1) जाव अपराजिया सव्वट्ठसिद्धगा। 3 के० णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! चोसटिं असुरकुमारावास० प०, तेणं भंते! किं संखेन्जवित्थडा असंखेजवि०?, गोयमा! संखेन्जवित्थडावि असंखेजवि०, 4 चोसट्ठी(ए) णंभंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेजवि० असुरकुमारावासेसु एगसमएणं के० असुरकु० उव० जाव के० तेउलेसा उव० के० कण्हपक्खिया उव० एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा तहेव वागरणं नवरं दोहिं वेदेहिं उव०, नपुंसगवेयगा न उव०, सेसंतं०, उव्वटुंतगावि तहेव नवरं असन्नी उव्वटुंति, ओहिनाणी ओहिदसणी य ण उव्वटुंति, सेसंतं चेव, पन्नत्तएसु तहेव नवरं संखेजगा इत्थिवेदगा प० एवं पुरिसवेदगावि, नपुंसगवेदगा नत्थि, कोहकसाई सिय अत्थि सिय नत्थि, जड़ अस्थि ज० एक्कोवा दोवा तिन्निवा उ० संखेज्जाप० एवं माण माया संखेज्जा लोभकसाई प० सेसंतं चेव तिसुवि गमएसु संखेजेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ, एवं असंखेजवित्थडेसुवि नवरं तिसुवि गमएसु असं० भाणियव्वा जाव असं० अचरिमा प०। 5 के. णं भंते! नागकुमारावास०? एवं जाव थणियकुमारा नवरंजत्थ जत्तिया भवणा॥६के० णंभंते! वाणमंतरावाससयसहस्सा प०?,गोयमा! असं० वाणमंतरावाससयसहस्सा प०, ते णं भंते! किं संवित्थडा असं वित्थडा?, गोयमा! संवित्थडा नो असं वित्थडा, 7 संखेजेसुणं भंते! वाणमंतरावास. एगसमएणं के० वाणमंतरा उव०?, एवं जहा असुरकुमाराणं संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणि० वाणमंतराणवि तिन्नि गमगा। 8 के० णं भंते! जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! असंखेजा जोइसियविमाणावास०प०, तेणं भंते! कि संखेजवित्थडा०?, एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणवि तिन्नि गमगा भाणि नवरं एगा तेउलेस्सा, उववजंतेसु पन्नत्तेसु य असन्नी नत्थि, सेसंतं चेव ॥९सोहम्मे णं भंते! कप्पे के० विमाणावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! बत्तीसं विमाणावास०प०, ते णं भंते! किं संवित्थडा असं वित्थडा?, गोयमा! संवित्थडावि असं वित्थडावि, 10 सोहम्मेणंभंते! कप्पे बत्तीसाए विमाणावास. सम्यग्दृष्ट्यादीनामुत्पादलेश्यावान्भूत्वादिप्रश्नाः / // 1002 //