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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 994 // ॥अथ त्रयोदशंशतकम्॥ ॥त्रयोदशशतके प्रथमोद्देशकः॥ व्याख्यातंद्वादशंशतम्, तत्र चानेकधा जीवादयः पदार्था उक्ताः, त्रयोदशशतेऽपित एव भङ्गायन्तरेणोच्यन्त इत्येवंसम्बन्धमिदं व्याख्यायते, तत्र पुनरियमुद्देशकसङ्गहगाथा 1 पुढवी 1 देव 2 मणंतर 3 पुढवी 4 आहारमेव 5 उववाए 6 / भासा 7 कम 8 अणगारे केयाघ(ह)डिया 9 समुग्घाए 10 // 2 रायगिहे जाव एवंव०-कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! सत्त पुढवीओप०, तंजहा- रयणप्पभाजाव अहेसत्तमा। 3 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! तीसं निरयावास०प०, ते णं भंते! किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा?, गोयमा! संखेजवित्थडावि असंखेजवित्थडावि, ४इमीसेणंभंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उव०१? के० काउलेस्सा उव० 2? केवइया कण्हपक्खिया उव० 3? केवतिया सुक्कपक्खिया उव० 4? के० सन्नी उव०५? के० असन्नी उव०६? के० भवसिद्धीया उव०७? के० अभवसिद्धीया उव० 8? के० आभिणिबोहियनाणी उव० 9? के० सुयनाणी उव० 10? के० ओहिनाणी उव० 11? के० मइअन्नाणी उव०१२? के० सुयअन्नाणी उव०१३? के० विन्भंगनाणी उव०१४? के० चक्खुदंसणी उव०१५? के० अचक्खुदंसणी उव०१६? के० ओहिदसणी उव० 17? के आहारसन्नोवउत्ता उव०१८? के० भयसन्नो० उव० 19? के० मेहुणसन्नो उव० 20? के० परिग्गहसन्नो० उव० 21? के इत्थिवेयगा उव० 22? के० पुरिसवेदगा उव० 23? के नपुंसगवेदगा उव० 24? के कोहकसाई उव० 25? जाव के लोभकसायी उव० 28? के. सोइंदियउवउत्ता उव० 29? जाव के० फासिंदियोवउत्ता उव० 33? के. 13 शतके उद्देशकः१ नरकपृथिव्यधिकारः। सङ्घहगाथा सूत्रम् 470 सप्तनरकपृथ्वीषुसहयातासड्यातयोजननरकावासेष्वेकसमये नरकजीवोत्पाद कापोतलेश्याकृष्णपाक्षिकसंज्यादिजीवोत्पादोद्वर्तनासत्तासङ्ख्याप्रश्राः / // 994 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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