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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 937 // इत्यादिना यत्सूचितं तदिदम्, दोच्चा णं भंते ! पुढवी किंनामा किंगोया पन्नत्ता?, गोयमा! वंसा नामेणं सक्करप्पभा गोत्तेण मित्यादीति // 444 // द्वादशशते तृतीयः॥१२-३॥ ॥द्वादशशतकेचतुर्थ उद्देशकः॥ अनन्तरं पृथिव्य उक्तास्ताश्च पुद्गलात्मिका इति पुद्गलांश्चिन्तयंश्चतुर्थोद्देशकमाह, तस्य चेदमादिसूत्रम् १रायगिहे जाव एवं वयासी-0 दो भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति एगयओ साहण्णित्ता किं भवति?, गोयमा! दुप्पएसिए खंधे भवइ, O से भिजमाणे दुहा कज्जइ एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ। र तिन्नि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति 2 किं भवति?, गोयमा ! तिपएसिए खंधे भवति, से भिजमाणे दुहावि तिहावि क०, दुहा कज्जमाणे एगयओपरमाणुपो० एगयओ दुपएसिए खंधेभ०, तिहा कज्जमाणे तिण्णि परमाणुपो० भवंति। 3 चत्तारि भंते! परमाणुपो० एगयओ साहन्नंति जाव पुच्छा, गोयमा! चउपएसिए खंधे भ०, से भिज्जमाणे दुहावि तिहावि चउहावि क०, दुहा कज्जमाणे एग० परमाणुपो० एग० तिपएसिएखंधे भ०, अहवा दो दुपएसिया खंधा भ०, तिहा कज्जमाणे एग० दो परमाणुपो० एग दुप्पएसिए खंधे भ०, चउहा कन्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति। ४पंच भंते! परमाणुपो० पुच्छा गोयमा! पंचपएसिए खंधे भ०, से भिन्जमाणे दुहावि तिहावि चउहावि पंचहावि क०, दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपो० एग० चउपएसिए खंधे भ० अहवा एग• दुपएसिए खंधे भ० एग० तिपएसिए खंधे भ०, तिहा कज्जमाणे एग. दो परमाणुपो० एगयओ तिप्पएसिए खंधे भ० अहवा एग० परमाणुपो० एग० दो दुपएसिया खंधा भवंति, चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपो० एग• दुप्पएसिए खंधे भवति, पंचहा कज्जमाणे पंच परमाणुपो० भवंति / 5 छन्भंते! परमाणुपो० पुच्छा, गोयमा! छप्पएसिए खंधे भ०, से भिज्जमाणे दुहावि तिहावि जाव छव्विहावि 12 शतके उद्देशकः 4 पुदला|धिकारः। सूत्रम् 445 | एकद्वित्र्यादिदश यावत्सङ्ख्ये| यासङ्घयेयानन्ताणुएकतयास्कन्धेनभेदेनच स्कन्धादिभङ्गाः / // 937 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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