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________________ |11 शतके उद्देशक: श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 852 // उत्पला केवइया उववजंति?, गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेना वा असंखेज्जा वा उव० 2 / 5 ते णं भंते! जीवा समए 2 अवहीरमाणा 2 केवतिकालेणं अवहीरंति?, गोयमा! ते णं असंखेजा समए 2 अवहीरमाणा 2 असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया 3 / 6 तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा प०?, गोयमा! ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उ० सातिरेगंजोयणसहस्सं 4 / 7 ते णं भंते! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा?, गोयमा! नो अबंधगा बंधए वा बंधगा वा एवं जाव अंतराइयस्स, 8 नवरं आउयस्स पुच्छा, गोयमा! बंधए वा अबंधए वा बंधगा वा अबंधगा वा अहवा बंधए य अबंधए य अहवाबंधएय अबंधगाय अहवा बंधगाय अबंधए य अहवा बंधगा य अबंधगा य 8 एते अट्ठभंगा। 9 तेणंभंते! जीवाणाणावरणिजस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा?, गोयमा! नो अवेदगावेदए वा वेदगावा एवंजाव | अंतराइयस्स, 10 ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा?, गोयमा! सायावेदए वा असायावेयए वा अट्ठ भंगा 6 / 11 ते णं भंते! कृ. नी. का. 32 80 चतुषु स्थानेष्वेतेऽष्टौ संयोज्याः तथा च 32 भङ्गाः एकयोगे एकत्वबहुत्वाम्यामष्टौ 8 चतुर्विंशतिः 24 त्रिकसंयोगे द्वकयोगे षोडश भवन्ति 16 चतुष्कर्सयोगे द्वात्रिंशत् एवं सर्व. धिकारः | साहगाथा सूत्रम् 409 | उत्पलस्यैकानेकजीवीत्व कुतरागमत्व परिमाणोत्पातावगाहना कर्मबन्धवेदोदयत्वादिलेश्योपयोगादिकायस्थिति अन्यगमनसर्वजीवोत्पादादि| प्रश्नाः / है | 24 योगे |13 13 6 नी. 14 उ.नी. 13 23 13 एव२४ नीनोचतुष्कसयोग 16 भागा एवंटसर्वे 3333 | २६भङ्गाः एवं 16 भङ्गा ज्ञातव्या 8 // 852 // 33 उ.नो. 33 39 33 एव१२ त्रिकयोगे 8 भङ्गाः
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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