________________ 3888888 श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 851 // // अथ, एकादशंशतकम् // ॥एकादशशतके प्रथमोद्देशकः॥ व्याख्यातं दशमं शतम्, अथैकादशं व्याख्यायते, अस्य चायमभिसम्बन्धः, अनन्तरशतस्यान्तेऽन्तरद्वीपा उक्तास्ते च वनस्पतिबहुला इति वनस्पतिविशेषप्रभृतिपदार्थस्वरूपप्रतिपादनायैकादशंशतं भवतीत्येवंसम्बद्धस्यास्योद्देशकार्थसङ्गहगाथा 1 उप्पल १सालु 2 पलासे 3 कुंभी 4 नाली य५ पउम 6 कन्नी 7 यनलिण 8 सिव ९लोग 10 काला 11 लं(ल)भिय 12 दस दो य एक्कारे॥१॥ __उववाओ 1 परिमाणं 2 अवहारु ३ञ्चत्त 4 बंध 5 वेदे 6 य / उदए 7 उदीरणाए 8 लेसा 9 ट्ठिी 10 य नाणे 11 य ॥१॥जोगु 12 वओगे 13 वन्न 14 रसमाई 15 ऊसासगे 16 य आहारे 17 / विरई 18 किरिया 19 बंधे 20 सन्न 20 कसायि 22 त्थि 23 बंधे 24 य / / २॥सन्निं 25 दिय 26 अणुबंधे 27 संवेहा 28 हार 29 ठिइ 30 समुग्घाए 31 / चयणं 32 मूलादीसुय उववाओ 33 सव्वजीवाणं॥ 11 शतके उद्देशकः 1 उत्पलाधिकारः / सङ्ग्रहगाथा सूत्रम् 409 उत्पलस्यैकानेकजीवीत्व कुतरागमत्व परिमाणोत्पातावगाहना कर्मबन्ध| वेदोदयत्वादि| लेश्योपयोगादिकायस्थिति अन्यगमनसर्व| जीवोत्पादादिप्रश्नाः / 2 तेणं कालेणं 2 रायगिहे जाव पञ्जुवासमाणे एवं व०, उप्पलेणं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे?, गोयमा! एगजीवे नो अणेगजीवे, तेण परंजे अन्ने जीवा उववजंति ते णं णो एगजीवा(वे) अणगेजीवा(वे) / 3 तेणं भंते! जीवा कओहिंतो उववखंति? किं नेरइएहितो उववखंति तिरि० मणु० देवेहिंतो उव०?, गोयमा! नो नेरतिएहितो उव० तिरिक्खजोणिएहितोवि उव०, मणुस्सेहितो० देवेहितोवि उव० एवं उववाओ भाणियव्वो, जहा वक्त्रंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसाणेति 1 / 4 ते णं भंते! जीवा एगसमएणं // 851 //