________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 818 // ९शतके उद्देशक: 33 ब्राह्मणकुण्डग्रामाधिकारः। सूत्रम् 389 किल्बिषिकदेवस्थितिनिवासकर्मादानतदुत्पादसिद्धिगमनादिप्रश्नाः / तेरससागरोवम० देवकि० देवा परि०?, गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स कप्पस्स हिडिं लंतए कप्पे एत्थ णं तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया देवा परि०।४२ देवकि० णं भंते! केसुकम्मादाणेसुदेवकिग्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति?, गोयमा! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया उवज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया संघपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अयसकरा अवन्नकरा अकित्तिकरा बहूहिं असम्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहिय अप्पाणंच ३वुग्गाहेमाणावुप्पाएमाणा बहूईवासाइंसामन्नपरियागं पाउणंति पा०२ तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्वंते कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसुदेवकिव्विसिएसुदेवकिव्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा-तिपलिओवमट्ठितीएसु वा तिसागारोवमट्टितीएसु वा तेरससागरोवम० वा। 43 देवकिब्विसियाणं भंते! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरंचयंचइत्ता कहिं गच्छंति कहिं उववजंति?, गोयमा! जाव चत्तारिपंच नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाइंसंसारं अणुपरियट्टित्ता तओपच्छा सिझंति बुझंति जाव अंतं करेंति, अत्थेगइया अणादीयं अणादयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटुंति // 44 जमाली णं भंते! अण० अरसाहारे विरसाहारे अंता० लूहा. तुच्छा० अरसजीवी विरसजीवी जाव तुच्छ० उवसंत. पसंत विवित्त०?, हंता गोयमा! जमाली णं अण० अरसाहारे विरसा. जाव विवित्तजीवी 45 जति णं भंते! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हाणं भंते! जमाली अण कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिएसुदेवकि० देवेसुदेवकिव्विसियत्ताए (देवत्ताए) उववन्ने?, गोयमा! जमाली णं अण. आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए जाव वुप्पाएमाणे जाव बहूइं वासाइं सामन्नपरियागंपाउणित्ता अद्धमासियाएसंलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति तीसं० २त्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्वंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे जाव उववन्ने। सूत्रम् 389 // //