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________________ ९शतके उद्देशक: श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 755 // धिकारः। सूत्रम् 373 नारकजीवप्रवेशनकाल्पबहुत्व प्रश्नाः / सूत्रम् 374 24 एयस्सणंभंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स सक्करप्पभापुढवि० जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणगस्सय कयरे 2 जाव विसेसाहिया वा?, गंगेया! सव्वत्थोवे अहेसत्तमा(म)पुढविनेरइयपवेसणए तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे एवं पडिलोमगंजाव रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे॥सूत्रम् 373 // 23 उक्कोसेण मित्यादि, उत्कर्षा उत्कृष्टपदिनो येनोत्कर्षत उत्पद्यन्ते ते सव्वेवि त्ति य उत्कृष्टपदिनस्ते सर्वेऽपि रत्नप्रभायां भवेयुः तद्गामिनां तत्स्थानां च बहुत्वात्, इह प्रक्रमे द्विकयोगे षड् भङ्गकास्त्रिकयोगे पञ्चदश चतुष्कसंयोगे विंशतिः पञ्चकसंयोगे पञ्चदश षड्योगे षट् सप्तकयोगे त्वेक इति॥ 24 अथरत्नप्रभादिष्वेव नारकप्रवेशनकस्याल्पत्वादिनिरूपणायाह एयस्सण मित्यादि, तत्र सर्वस्तोकं सप्तमपृथिवीनारकप्रवेशनकम्, तद्गामिनां शेषापेक्षया स्तोकत्वात्, ततः षष्ठ्यामसङ्ख्यातगुणम्, तद्गामिनामसङ्ख्यातगुणत्वात्, एवमुत्तरत्रापि॥ 373 / / अथ तिर्यग्योनिकप्रवेशनकप्ररूपणायाह २५तिरिक्खजोणियपवेसणएणं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?, गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा- एगिदियतिरिक्ख- द्वयोस्तिरोकि जोणियपवेसणए जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए। 26 एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणिय योगे 10 भङ्गाः पवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होजा जाव पंचिंदिएसु होजा?, गंगेया! एगि० वा होजा जाव पंचिं० वा 12 24 15 |13 25 एवं होजा। 27 दोभंते! तिरिक्खजोणिया पुच्छा, गंगेया! एगि० वा होज्जाजाव पंचिं० वा होजा, अहवा एगे एगिदिएसु होजा एगे बेइं(बें)दिएसु होज्जा एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणएवि भाणियव्वे जाव 15 35 असंखेजा। 28 उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया पुच्छा, गंगेया! सव्वेवि ताव एगिदिएसु होज्जा अहवा एगिदिएसु तिर्यग्योनिप्रवेशनकप्रकारप्रश्नः। एकादियावदसङ्ख्यात ति० प्र० योगादि उत्कृष्ट ति० प्र०,अल्पबहुत्वादिप्रश्नाः / // 755 23 45
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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