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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 716 // ९शतके उद्देशकः 2 ज्योतिष्काधिकारः। सूत्रम् 363 जम्बूलवणधातकीकालोद पुष्करेषु ॥नवमशतके द्वितीयोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशके जम्बूद्वीपवक्तव्यतोक्ता द्वितीये तु जम्बूद्वीपादिषु ज्योतिष्कवक्तव्यताऽभिधीयते, तस्य चेदमादिसूत्रम् १रायगिहे जाव एवं वयासी(दासि)- जम्बूद्दीवेणंभंते! दीवे केवइया चंदा पभासिसुवा पभासेंति वा पभासिस्संति वा?, एवं जहा जीवाभिगमे जाव-'एगंच सयसहस्संतेत्तीसंखलु भवे सहस्साई। नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं॥१॥' सोभं सोभिंसुसोभिंति सोभिस्संति // सूत्रम् 363 // २लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा 3 एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ॥ धायइसंडे कालोदे पुक्खरवरे अन्भिंतरपुक्खरद्धे मणुस्सखेत्ते, एएसु सव्वेसु जहा जीवाभिगमे जाव-‘एगससीपरिवारो तारागणकोडाकोडीणं।' 3 पुक्खर (रोदे) णं भंते! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसुवा?, एवं सव्वेसु दीवसमुद्देसु जोतिसियाणं भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 363 // नवमसए बीओ उद्देसोसमत्तो॥९-२॥ 1 रायगिह यित्यादि, एवं जहा जीवाभिगमे (उ०२ प०३००-१) त्ति तत्र चैतत्सूत्रमेवम्, केवतिया चंदा पभासिंसु वा 3? न केवतिया सूरिया तविंसुवा 3? केवइया नक्खत्ता जोयंजोइंसुवा 3? केवइया महगहा चारं चरिंसुवा 3? केवइयाओ तारगणकोडाकोडीओ सोहिं सोहिंसु वा 3? शोभां कृतवत्य इत्यर्थः, गोतमा! जंबूद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिंसु वा 3 दो सूरिया तविंसु वा 3 छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु वा 3 छावत्तरं गहसयं चारं चरिंसु वा 3 बहुवचनमिह छान्दसत्वादि ति, एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई शेषं तु सूत्रपुस्तके लिखितमेवास्ते॥२ लवणे णं भंते! इत्यादौ, एवं जहा जीवाभिगमे (उ०२ प०३०३-१, ३५२-२)त्ति तत्र चेदं चन्द्रसूर्यप्रश्नाः / // 716 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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