________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 538 // उववन्ने, एगे सुकुले पञ्चायाए, अवसेसा ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववन्ना // सूत्रम् 301 // 12 कम्हाणं भंते! सक्के 3 चमरे 3 कूणियस्सरनोसाहेजंदलइ(लिय)त्था?, गोयमा! सक्के 3 पुव्वसंगतिए चमरे 3 परियायसंगतिए, एवं खलु गोयमा! सक्के देविंदे देवराया चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रन्नो साहि(हे)जंदलइत्था। सूत्रम् 302 // 13 बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खं(ख)ति जाव परूवेंति(वेइ) एवं खलु बहवे मणुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसुसंगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति (गीता अ० 2 श्लो० 37) से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! जण्णं से बहुजणो अन्नम० एवं आइ० जाव उववत्तारो भवंति जे ते एवमाहं (हिं)सुमिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि- एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं 2 वेसाली नामं नगरी होत्था, वण्णओ, तत्थ णं वेसालीए ण वरुणे नामंणागनत्तुए परिवसइ अढे जाव अपरिभूए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे छठे छट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तए णं से वरुणे णागनत्तुए अन्नया कयाइरायाभिओगेणं गणाभि० बलाभि० रहमुसले सं० आणत्ते समाणे छट्ठभत्तिए अट्ठमभत्तं अणुवट्टेति अट्ठमभत्तं अणुवर्दृत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ रत्ता एवं व०-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेह हयगयरहपवर जाव सन्नाहेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तएणं से (ते) कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवट्ठावेंति हयगयरह जाव सन्नाहेंति रत्ता जेणेव वरुणे नागनत्तुए जाव पञ्चप्पिणंति, तएणं सेव० नाग० जे० मज्जणघरे तेणेव उवाग० जहा कूणिओ जाव पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सन्नद्धबद्धे सकोरेंटमल्लदामेणं जाव धरिजमाणेणं अणेगगणनायग जाव दूयसंधिपाल सद्धिं संपरिवुडे मज्जणघराओ पडिनिक्खमति रत्ता जे० बाहिरिया उवट्ठाणसाला जे० चाउग्घंटे आसरहे ते. उवाग० २त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरू(रु)हइ रत्ता ७शतके उद्देशकः 9 असंवृतानगाराधिकारः। सूत्रम् 302 इन्द्रस्यकोणिकसहाय प्रश्नः। सूत्रम् 303 युद्धे हतानां स्वर्गगमन प्रश्नः / // 538 //