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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 501 // पच्चक्खाणीणं पुच्छा, गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्च०, उत्तरगुणपच्च० संखेनगुणा, अपच्च० असंखेनगुणा / 14 जीवा णं भंते! किं सव्वमूलगुणपञ्च० देसमूलगुणपच्च० अपच्च०?, गोयमा! जीवा सव्वमूलगुणपच्च० देसमूलगुणपच्च० अपच्च वि। 15 नेरइयाणंपुच्छा, गोयमा! ने० नोसव्वमूलगुणपच्च० नोदेसमूलगुणपच्च० अपच्च०, एवं जाव चउरिंदिया।१६ पंचिंदियतिरिक्खपुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्ख० नो सव्वमूलगुणपञ्च० देसमूलगुणपञ्च० अपञ्च०वि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा ने० / 17 एएसिणं भंते! जीवाणं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणीणं देसमूलगुणपञ्चक्खाणीणं अपञ्चक्खाणीण य कयरेशहितो जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपच्च०, देसमूलगुणपच्च० असंखेनगुणा, अपञ्च० अणंतगुणा / एवं अप्पाबहुगाणि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सव्वत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया देस मूलगुणपच्च०, अपच्च० असंखेज्जगुणा। 18 जीवाणं भंते! किं सव्वुत्तरगुणपञ्च० देसुत्तरगुणपच्च० अपच्च०?, गोयमा! जीवा सव्वुत्तरगुणपच्च०वि तिन्निवि, पंचिंदियति० मणुस्सा य एवं चेव, सेसा अपच्चक्खाणीजाव वेमाणिया।१९ एएसिणंभंते! जीवाणंसव्वुत्तरगुणपच्च० अप्पाबहुगाणि तिन्निवि जहा पढमे दंडए जाव मणूसाणं // 20 जीवा णं भंते! किं संजया असंजया संजयासंजया?, गोयमा! जीवा संजयावि असंजयावि संजयासंजयावि तिन्निवि, एवं जहेव पन्नवणाए तहेव भाणियव्वं, जाव वेमा०, अप्पाबहुगंतहेव तिण्हवि भाणियव्वं॥ २१जीवाणंभंते ! किं पञ्चक्खाणी अपच्च० पञ्चक्खाणापच्च०?, गोयमा! जीवा पच्च विएवं तिन्निवि, एवं मणुस्साण वि तिन्निवि, पंचिंदियतिरि० आइल्लविरहिया सेसा सव्वे अपच्च० जाव वेमा०।२२ एएसि णं भंते! जीवाणं पञ्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पच्च० पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्च० अणंतगुणा, पंचेंदियतिरि सव्वत्थोवा 0 (प्रज्ञा० पद-३, प० 137-2 सू०७०) 7 शतके उद्देशक:२ विरति| रधिकारः। | सूत्रम् 273 नैरयिकादिषु | प्रत्याख्यानभेदप्रभेद तेषामल्पबहुत्व संयतासंयतादि प्रश्नाः /
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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