________________ 380 श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 490 // कारात्कर्मबन्धचिन्तान्वितमनगारसूत्रम्, अनगाराधिकाराच्च तत्पानकभोजनसूत्राणि 18 अणगारस्स णं भंते! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा चिट्ठमा० वा निसियमा० (वा) तुयट्टमा० वा अणाउत्तं वत्थं(च्छं) पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमा० वा निक्खिवमा० वा तस्स णं भंते! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया कि० क.?, गो० नो ईरिया० कि० क. संप० कि० का।से केणटेणं?, गोयमा! जस्स णं कोहमाणमायालोभा वो(वि)च्छिन्ना भवंति तस्सणं ईरिया० कि० क० नो संप० कि० क०, जस्स णं कोहमाणमायालोभा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपरायकि० क० नो ईरिया०, अहासुत्तं रीयमाणस्स ईरियावहिया कि० क उस्सुत्तं रीयमा० संपराइया कि० क०, सेणं उस्सुत्तमेव रियति, से तेणद्वेणं०॥ सूत्रम् 267 // 19 अह भंते! सइंगालस्स सधूमस्स संजोयणादोसदुट्ठस्स पाणभोयणस्स के अढे प०?, गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासुएसणिज्जं असणपाण 4 पडिगाहि(ग्गाहे)त्ता मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारं आहारेति एस णं गोयमा! सइंगाले पाणभोयणे, जे णं निग्गंथे वा 2 फासुएसणिज्जं असणपाण 4 पडिगाहित्ता महया 2 अप्पत्तिय(यं)कोहकि लामं करेमाणे आहारमाहारेइ एस णंगोयमा! सधूमे पाणभोयणे, जेणं निग्गंथे वा 2 जाव पडिग्गहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अन्नदव्वेण सद्धिं संजोएत्ता आहारमा० एस णं गोयमा! संजोयणादोसदुढे पाणभो०, एस णं गोयमा! सइंगालस्स सधूमस्स संजोयणादोसदु० पाणभोय. अद्वे प० / 20 अह भंते! वीतिंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाणभोय के अटे प०?, गोयमा! जे णं णिग्गंथो वा जाव पडिगाहेत्ता अमुच्छिए जाव आहा० एस णं गोयमा! वीतिंगाले पाणभो०, जेणं निग्गंथे वा 2 जाव पडिगाहेत्ता णो महया अप्पत्तियं जाव आहा०, एसणं गोयमा! वीयधूमे पाणभो०, जेणं निग्गंथे वा 2 जाव पडिगाहेत्ता जहालद्धं तहा आहारमा० एस णं गोयमा! संजोयणादोसविप्पमुक्के पाणभो०, एस णं गोयमा! वीतिंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाणभोय० अढे 7 शतके उद्देशकः१ आहारकानाहारकवक्तव्यताऽऽधिकारः। सूत्रम् 267-268 सकषायस्य सांपरायिकी क्रिया प्रश्नः। अङ्गारदोषादि शुद्धादि प्रश्नाः / 8||490 //