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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 437 // १जीवेणं भंते! कालाएसेणं किंसपदेसे अपदेसे?, गोयमा! नियमा सपदेसे / 2 नेरतिएणं भंते! कालादे किं सप० अप०?, गोयमा! सिय सप० सिय अप०, एवं जाव सिद्धे / 3 जीवाणं भंते! कालादे० किं सपदेसा अप०?,गोयमा! नियमा सप० / 4 नेर० णं भंते! कालादे० किं सपदेसा अपदेसा?, गोयमा! सव्वेवि ताव होज्जा सपदेसा 1 अहवा सपएसा य अपदेसे य 2 अहवासपदेसा य अपदेसाय 3, एवं जावथणियकुमारा ॥५पुढविकाइयाणं भंते! किंसपदेसा अपदेसा?, गोयमा! सप०वि अप०वि, एवं जाव वणप्फइकाइया, सेसा जहा नेर० तहा जाव सिद्धा॥Oआहारगाणं जीवेगेंदियवज्जो तियभंगो, अणाहार जीवेगिंदियवज्जा छन्भंगा एवं भाणियव्वा-सपदेसा वा 1 अपएसा वा 2 अहवा सपदेसे य अप्पदेसे य 3 अहवा सपदेसे य अपदेसा य 4 अहवा सपदेसा य अपदेसे य 5 अहवा सपदेसा य अपदेसा य 6, 0 सिद्धेहिं तियभंगो, भवसिद्धिया अभवसि० (भवसिद्धिया) जहा ओहिया, O नो भवसि नोअभवल्या जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो, 0असण्णीहिं एगिदियवज्जो तिय भंगो, O नेरइयदेवमणुएहिं छन्भंगो, 0 नोसन्निनोअसन्निजीवमणुयसिद्धेहिं तियभंगो 0 सलेसा जहा ओहिया॥9 कण्हलेस्सानीललेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ नवरं जस्स अस्थि एयाओ, (r) तेउलेस्साए जीवादिओ तियभंगो, नवरं पुढविकाइएसु आउवणप्फतीसु छब्भंगा, ®पम्हलेससुक्कलेस्साए जीवादिओहिओ तियभंगो, ®अलेसीहिं जीवसिद्धेहिं तियभंगो मणुस्से छभंगा, (r) सम्मद्दिट्ठिहिं जीवाइतियभंगो, विगलिंदिएसु छन्भंगा, मिच्छद्दि० एगिदिय वज्जो तियभंगो सम्मामिच्छदि० छन्भंगा, ®संजएहिं जीवाइओ तियभंगो, असंजएहिं एगिदियवज्जो तियभंगो, संजयासंजएहिं तियभंगो जीवादिओ, मोसंजय नोअसंजय नोसंजयासंजय जीवसिद्धेहिं तियभंगो, ®सकसाईहिंजीवादिओ तियभंगो, एगिदिएसु अभंगकं, ®कोहकसाईहिं जीवएगिंदियवज्जो तियभंगो, देवेहिं छन्भंगा, माणकसाईमायाकसाई जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, 6 शतके उद्देशक:४ सप्रदेशाधिकारः। सूत्रम् 239 जीवनैरविकादीनां कालादेशेन | सप्रदेशत्वादि प्रश्नाः / आहारकादि चतुर्दशद्वारेषु त्रिषडादि भङ्गाः / // 437 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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