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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 420 // // अथ षष्ठ शतकम्॥ ॥षष्ठशतके प्रथमोद्देशकः। व्याख्यातं विचित्रार्थं पञ्चमं शतम्, अथावसराऽऽयातं तथाविधमेव षष्ठमारभ्यते, तस्य चोद्देशकार्थसङ्ग्रहणी गाथेयम्, वेयण 1 आहार 2 महस्सवे य ३सपएस 4 तमुए य 5 / भविए 6 साली 7 पुढवी 8 कम्म 9 अन्नउत्थी 10 दस छट्ठगंमि सए॥१॥ वेयणे त्यादि, तत्र वेयण त्ति महावेदनो महानिर्जर इत्याद्यर्थप्रतिपादनपरः प्रथमः१ आहार त्ति, आहाराद्यर्थाभिधायको द्वितीयः 2 महस्सवे यत्ति महाश्रवस्य पुद्गला बध्यन्त इत्याद्यर्थाभिधानपरस्तृतीयः 3 सपएस त्ति सप्रदेशो जीवोऽप्रदेशो वेत्याद्यर्थाभिधायकश्चतुर्थः 4 तमुएय त्ति तमस्कायार्थनिरूपणार्थः पञ्चमः 5 भविए त्ति भव्यो नारकत्वादिनोत्पादस्य योग्यस्तद्वक्तव्यताऽनुगतः षष्ठः 6 सालि त्ति शाल्यादिधान्यवक्तव्यताऽऽश्रितः सप्तमः 7 पुढवित्ति रत्नप्रभादिपृथिवीवक्तव्यतार्थोऽष्टमः 8 कम्म त्ति कर्मबन्धाभिधायको नवमः 9 अन्नउत्थि त्ति, अन्ययूथिकवक्तव्यताऽर्थो दशमः 10 इति। १से नूणं भंते! जे महावेयणे से महानिजरे जे महानिजरे से महावेदणे, महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिजराए?, हंता गोयमा! जे महावे एवं चेव। 2 छट्ठ(ट्ठि)सत्तमासुणं भंते! पुढवीसुनेरइया महावे०?, हंता महावे०, 3 ते णं भंते! समणेहितो निग्गंथेहिंतो महानिजरतरा?, गोयमा! णो ति० स०, 4 से केणटेणं भंते! एवं वु. जे महावे. जाव पसत्थनिजराए?, गोयमा! से जहानामए- दुवे वत्था सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते एगे वत्थे खंजणरा०, एएसिणंगोयमा! दोण्हं वत्थाणं कयरे वत्थे दुधोयतराए चेव दुवामत. चेव दुपरिकम्मत चेव? क० वा वत्थेसुधोयत० चेव सुवामत. चेव सुपरिकम्मत चेव?,जे वासेवत्थे कद्दमरागरत्ते जेवा से वत्थे खंजण?, भगवं! तत्थ णंजे से वत्थे कद्दमरागरत्ते से णं वत्थे दुधोय. चेव दुवाम० चेव दुप्परिकम्मत चेव, एवामेव 6 शतके उद्देशकः१ वेदनाधिकारः। सूत्रम् 229 खञ्जनरागरक्तवस्त्रादिदृष्टान्तेन महावेदनाल्पनिजरे तत्कारणादि प्रश्नाः / / / 420 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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