________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 367 // र्यच्छब्दादिकं जानाति स तज्जानाति, तच्च जानन्नसावभेदोपचाराज्ज्ञानसङ्खयेत्युपस्कारः। शेषं पाठसिद्धम्॥४९६॥ से किं तं गणणासंखा?, 2 एक्को गणणं न उवेति, दुप्पभिति संखा, तंजहा- संखेज्जए असंखेज्जए अणंतए ।सूत्रम् 497 // से किं तं संखेजए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए।सूत्रम् 498 / / से किं तं असंखेन्जए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेजए असंखेज्जासंखेज्जए।सूत्रम् 499 // से किंतं परित्तासंखेजए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए।सूत्रम् 500 // से किं तं जुत्तासंखेजए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए। सूत्रम् 501 // से किं तं असंखेज्जासंखेन्जए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए॥ सूत्रम् 502 // से किं तं अणंतए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- परित्ताणंतए जुत्ताणंतए अणंताणंतए।सूत्रम् 503 // से किं तं परित्ताणंतए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तं०- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए।सूत्रम् 504 // से किं तं जुत्ताणंतए?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए॥सूत्रम् 505 // से किंतं अणंताणंतए?, 2 दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- जहण्णए य अजहण्णमणुक्कोसए य॥ सूत्रम् 506 // जहण्णयं संखेज्जयं कैत्तियं होइ?, दोरूवाइं, तेणपरं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ ॥सूत्रम् 507 // से किं तं गणण संखा, इत्यादि। एतावन्त एत इति सङ्ख्यानं गणनसङ्ख्या। तत्र एगो गणणं न उवेति, एकस्तावद्गणनं, 0 केवइयं। 0 दोरूवयं तेणं परं....। [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। १.३प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः सूत्रम् 497-507 1.3.4 भावप्रमाणम्। 1.3.4.1 गुण प्र०। 1.3.4.1.3 सवाभा०प्र०। अष्टानां मध्ये 1.3.4.1.3.7 गणनासं०भा०प्र०॥ तस्य सङ्कवातासहयातानन्तभेदा; जघन्यमध्यमोत्कृष्टादिप्रभेदावा जघन्य सडचेयक स्वरूपम्। / 367 //