________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। | / / 354 // वि सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो सिया खंधपदेसो 1, अधम्मपदेसो वि सिया धम्मपदेसो सिया आगासपएसो सिया जीवपएसो सिया खंधपएसो 2, आगासपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अहम्मपएसो सिया जीवपएसो सिया खंधपएसो, ३जीवपएसो वि सिया धम्मपएसो सिया अधम्मपएसो सिया आगासपएसो सिया खंधपएसो ४खंघपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया अगासपदेसो सिया जीव पदेसो 5, एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तंमा भणाहि, भइयवो पदेसो, भणाहि, धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे, अहम्मे पदेसे से पदेसे अहम्मे, आगासे पदेसे से पदेसे आगासे, जीवे पदेसे से पदेसे णोजीवे, खंधे पदेसे से पदेसे णोखंधे। एवं वयंतं सद्दणयं समभिरूढो भणति, जंभणसि, धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे जाव (जीवे पएसे से पएसे नोजीवे) खंधे पदेसे से पदेसे नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा?, (इत्थं खलु) एत्थ दो समासा भवंति, तंजहा, तप्पुरिसे य कम्मधारए य, तं ण णज्जइ कतरेणं समासेणं भणसि?, किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं?, जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि, धम्मे य से पदेसे य, से से पदेसे धम्मे, अहम्मे य से पदेसे य, से से पदेसे अहम्मे, आगासे य से पदेसे य, से से पदेसे आगासे, जीवे य से पदेसे य, से से पदेसे नोजीवे, खंधे य से पदेसे य, से से पदेसे नोखंधे। एवं वयंतं समभिरूढं (संपइ) एवंभूओ भणइ, जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहणगहित, देसेऽवि मे अवत्थूपदेसेऽवि मे अवत्थू / सेतं पदेसदिटुंतेणं ।सेतं नयप्पमाणे॥सूत्रम् 476 / / ( // 145 // ) - सिया जीव पदेसो ५'स्थाने 'जइ भइयव्वो पएसो एवं ते धम्मपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो सिअ अधम्मपएसो सिअ आगासपएसो सिअ जीवपएसो सिअ खंधपएसो, अधम्मपएसो सिअ धम्मपएसो जाव खंधपएसो, जीवपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो जाव सिअ खंधपएसो, खंधपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो जाव सिअ खंधपएसो'- इत्यादि वर्तते / 0 कौसान्तर्गतः पाठो मुद्रित प्रतौ / (r) से' इति सकृदेवास्ति चतुर्ध्वपि स्थानेषु / 0 10 473-476 सूत्राणां स्थान एकमेव 145 सूत्राङ्कमस्ति। [[1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। १.३प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः सूत्रम् 476 1.3.4 भावप्रमाणम्। 1.3.4. गण प्र०। 1.3.4.1.2 नयभावप्रमाणम् / प्रस्थकदृष्टान्तेन निरूपणम्। // 354 //