________________ श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 301 // [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। 1.3 प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः सूत्रम् 392-398 (r) गाहणाओ असंखेजगुणा। ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेज्जा, णो वातोहरेजा, णो कुच्छेना, णो पलिविद्धंसेजा, णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेना / जेणं तस्स पल्लस्स आगासपदेसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना वा अणफुण्णा वा तओणं समए 2 एगमेगं आगासपदेसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्लेखीणे नीरए निल्लेवे णिट्ठिए भवति, से तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे // सूत्रम् 396 // __ तत्थ णं चोदए पण्णवगं एवं वदासी- अस्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहिं अणफुण्णा?, हंता अत्थि, जहा को दिटुंतो?, से जहाणामते कोट्ठए सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थणं माउलुंगा पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता तेवि माता, तत्थ णं आमलयाँ पक्खित्ता तेविमाया, तत्थ णं बयरा पक्खिता तेऽवि माया, तत्थ णं चणगा पक्खित्ता तेऽविमाया, तत्थ णं मुग्गा पक्खित्ता तेविमाया, तत्थ णं सरिसवा पक्खित्ता तेवि माता, तत्थ णं गंगावालुया पक्खित्ता सावि माता, एवामेव एएणं दिटुंतेणं अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहिं अणफुण्णा / एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिया। तंसुहमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं / / 114 // सूत्रम् 397 // एतेहिं सुहुमेहिं खेत्तप० सागरोवमेहिं किं पओयणं?, एतेहिं सुहमपलि० साग० दिट्ठिवाए दव्वाइं मविखंति ॥सूत्रम् 398 // ( // 140 // ) क्षेत्रपल्योपममप्युक्तानुसारत एव भावनीयम् // 392-93 // नवरं व्यावहारिकपल्योपमे जेणं तस्स पल्लस्से, त्यादि / तस्य पल्यस्यान्तर्गता नभ:प्रदेशास्तैर्वालाग्रैर्येऽप्फुण्णत्त्यास्पृष्टा व्याप्ता आक्रान्ता इतियावत् / तेषांसूक्ष्मत्वात्प्रतिसमयमेकैकापहारे 0 ते णं वालग्गा जाव णो पूइत्ताए...' इति रूपेण पाठो वर्तते / ॐणा। 0या। लिं। ७गा। एवमेव। भ। ©दव्वा मविजंति। 7 392-398 सूत्राणां पाठो 140 सूत्राडूतया वर्तते। कालप्रमाणम्। 1.3.3.2 विभा०नि०। औप० कालः। 1.3.3.2.1-2 iii.क्षेत्रपल्योपम सागरोपमयोः 1. सूक्ष्म ii.व्यवहारिके भेदेतत्प्रयोजनया // 301 //