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________________ शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 228 // 1.2 नाम। 272-281 1.2.10 दशनाम। 1.2.10.9 द्रव्यक्षेत्रकाल अहवा मागहए मालवए सोरट्ठए मरहट्ठए कोंकणए, से तं खेत्तसंजोगे। सूत्रम् 277 // [1] उपक्रमः। से किं तं कालसंजोगे? 2 सुसमसुसमए सुसमए सुसमदूसमए दूसमसुसमए दूसमए दुसमदूसमए, अहवा पा उसए वासारत्तए सरदए हेमंतए वसंतए गिम्हए, सेतं कालसंजोगे। सूत्रम् 278 // से किं तं भावसंजोगे? 2 दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- पसत्थे य १अपसत्थे य 2 / / सूत्रम् 279 / / सूत्रम् से किं तं पसत्थे? पसत्थे नाणेणं नाणी, दंसणेणं दसणी, चरित्तेणं चरित्ती, से तं पसत्थे / / सूत्रम् 280 // से किं तं अपसत्थे? 2 कोहेणं कोही, माणेणं माणी, मायाए मायी, लोभेणं लोभी, से तं अपसत्थे, से तं भावसंजोगे, से तं संजोगेणं ॥सूत्रम् 281 // संयोगनाम / से किं तं संजोएण मित्यादि। संयोगः सम्बन्धः, स चतुर्विधः प्रज्ञप्तः। तद्यथा, द्रव्यसंयोग इत्यादि। सर्वं सूत्रसिद्धमेव // भावभेदाः। 272-73 // नवरं सचित्तद्रव्यसंयोगेन गावोऽस्य सन्तीति गोमानित्यादि // 274 // अचित्तद्रव्यसंयोगेन छत्रमस्यास्तीति तेषामनुक्रमेण छत्रीत्यादि // 275 / / मिश्रद्रव्यसंयोगेन हलेन व्यवहरतीति हालिकइत्यादि।अत्र हलादीनामचेतनत्वा(लीवानांसचेतनत्वान्मि सचित्तादि भारतादि श्रद्रव्यता भावनीया।। 276 // क्षेत्रसंयोगाधिकारे भरते जातो भरते वाऽस्य निवास इति तत्र जात: (पा० ४/३/२५)सोऽस्य / निवास (पा० 4/3/89) इति वाऽण्प्रत्यये भारतः। एवं शेषेष्वपि भावना कार्या ॥२७७॥कालसंयोगाधिकारे सुषमसुषमायां दिप्रशस्तादि प्रभेदाः। जात इति सप्तमी पञ्चम्यन्ते जनेर्ड: (कातन्त्र० 4/3/91) इति ड प्रत्यये सुषमसुषमजः। एवं सुषमजादिष्वपि भावनीयम् / // 228 // २७८॥भावसंयोगाधिकारे भाव:पर्यायः,सच द्विधा, प्रशस्तोज्ञानादिप्रशस्तश्चक्रोधादिः,शेषं सुगममिदमपिसंयोगप्रधानतया 0 कुं। 0 'मा' इति षट्स्वपि पदेषु / 0 दु। 0 व। O लोहेणं लोही। 0 का 0507 / 0 का०रू० 691 / सुषमसुषमजा
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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