________________ [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 216 // 1.2 नाम। सूत्रम् 262 1.2.9 नवनाम। गा०६८-७१ 1.2 अद्धत हृदयोन्मादनकर प्रबलस्मरदीपनं यूनामिति, शृङ्गारप्रधानचेष्टाप्रतिपादनादयं शृङ्गारो रस इति // 67 // अद्भुतं स्वरूपतो लक्षणतश्चाह (4) विम्हयकरो अपुव्वो व भुय पुव्वो व जो रसो होइ। सो हास विसायुप्पत्तीलक्खणो अब्भुतो नाम // 68 // अब्भुओ रसोजहा- अब्भुततरमिह एत्तो अन्नं किं अत्थि जीवलोगंमि / जंजिणवयणेणऽत्था तिकालजुत्ताविणज्जंति?॥६९॥ विम्हय गाहा, कस्मिंश्चिदद्भुते वस्तुनि दृष्टे विस्मयकरो विस्मयोत्कर्षरूपो यो रसो भवति सोऽद्भुतोनामेति सण्टङ्कः। कथंभूतः? अपूर्वः, अननुभूतपूर्वोभूतपूर्वो वा, अनुभूतपूर्वः / किंलक्षण इत्याह- हर्षविषादोत्पत्तिलक्षणः। शुभे वस्तुन्यद्भुते दृष्टे हर्षजननलक्षणोऽशुभे तु विषादजननलक्षण इत्यर्थः / / 68 // उदाहरणमाह- अब्भुय गाहा / इह जीवलोकेऽद्भुततरमितो जिनवचना त्किमन्यदस्ति? नास्तीत्यर्थः / कुत इत्याह- यद्, यस्मा जिनवचनेनार्थाजीवादयः, सूक्ष्म व्यवहित तिरोहितातीन्द्रिया मूर्तादिस्वरूपा अतीतानागत वर्तमानरूप त्रिकालयुक्ता अपि ज्ञायन्त॥ 69 // अथ रौद्रं हेतुतो लक्षणतश्चाह (5) भयजणणरूव सबंधकार चिंता कहासमुप्पन्नो / संमोह संभम विसाय मरणलिंगो रसो रोद्दो // 7 // रोहोरसोजहा-भिउडीविडंबियमुहाँ! संदट्ठोट्ठ! इयरुहिरमाकिन्नो। हणसि पसुंअसुरणिभा! भीमरसिय! अतिरोद्द! रोद्दोऽसि // 71 // भयगाहा / रूपम्, शत्रुपिशाचादीनाम्, शब्दस्तेषामेव, अन्धकारंबहुलतमोनिकुरुम्बरूपमुपलक्षणत्वादरण्यादयश्च पदार्था इह गृह्यन्ते, तेषां भयजनकानां रूपादिपदार्थानां येयं चिन्तातत्स्वरूपपर्यालोचनरूपा कथातत्स्वरूपभणनलक्षणा, तथोप 7 अनुभुअपुवो। 0 हरिसविसाउप्पत्ती..10 वयणेऽत्था / ॐ मुणिज्जंति / 7 विस्मयं करोति / भूतनामेति। ७या। ©स। हो। (r) भो। // 216 //