SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [[1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 169 // |1.2 नाम। सूत्रम् 210-216 1.2.2 दिनाम जीवो जन्तुरित्याद्यभिधानानि नामत्वसामान्याव्यभिचारादेकेन नामशब्देनोच्यन्त इति भावः। तदेवमिहैकेनाप्यनेन नामशब्देन सर्वाण्यपिलोकरूढाभिधानवस्तूनि प्रतिपाद्यन्त इत्येतदेकनामोच्यते, एकं सन्नामैकनामेतिकृत्वेति गाथार्थः। से तंएगणामेत्ति निगमनम् // 209 // से किं तं दुणामे? 2 दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- एगक्खरिए य अणेगक्खरिए य / / सूत्रम् 210 / / से किं तं एगक्खरिए? 2 अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- ह्री: श्री: धी: स्त्री, से तं एगक्खरिए। सत्रम् 211 // से किंतं अणेगक्खरिए? 2 कण्णा वीणा लता माला, से तं अणेगक्खरिए / सूत्रम् 212 // अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-जीवनामे य 1 अजीवनामे य २॥सूत्रम् 213 // से किं तंजीवणामे? 2 अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- देवदत्तोजण्णदत्तो विण्हुदत्तोसोमदत्तो, से तंजीवनामे ॥सूत्रम् 214 // से किं तं अजीवनामे? 2 अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- घडो पडो कडो रहो, सेतं अजीवनामे // सूत्रम् 215 // / (1) अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-विसेसिए य 1 अविसेसिए य१।(२) अविसेसिए दव्वे, विसेसिएजीवदव्वे अजीवदूब्वे य। (3) अविसेसिए जीवदव्वे, विसेसिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, (4) अविसेसिए णेरइए, विसेसिए रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमाए तमतमाए। अविसेसिए रयणप्पभापुढविणेरइए। विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य। एवं जाव अविसेसिए तमतमापुढवीणेरइए विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य / (5) अविसेसिए तिरिक्खजोणिए विसेसिए एगिदिए बेइंदिए तेइंदिए चउरिदिएँ (6) अविसेसिए एगिदिए। विसेसिए पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए Oनानि / ७'हा' इति, एवमग्रेतनेषु चतुर्ध्वपि पदेषु / ॐ पंचिदिए', इत्यधिकम् /
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy