________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् // 183 // तृतीयमध्ययन क्षुल्लिकाचारकथा, नियुक्तिः 206-215 मिश्राकथा विकथा कथादिश्च। नि०- इत्थिकहा भत्तकहा रायकहा चोरजणवयकहा य। नडनट्टजल्लमुट्ठियकहा उएसा भवे विकहा॥२०७॥ नि०- एया चेव कहाओ पन्नवगपरूवगं समासज्ज / अकहा कहा य विकहा हविज पुरिसंतरं पप्प / / 208 // नि०-मिच्छत्तं वेयन्तो जं अन्नाणी कहं परिकहेइ / लिंगत्थो व गिहि वा सा अकहा देसिया समए / 209 // नि०- तवसंजमगुणधारी जंचरणत्था कहिंति सन्भावं। सव्वजगजीवहियं सा उकहा देसिया समए॥२१०॥ नि०- जो संजओ पमत्तो रागद्दोसवसगओ परिकहेइ। साउ विकहा पवयणे पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं॥२११॥ नि०- सिंगाररसुत्तइया मोहकुवियफुफुगा सहासिंति / जं सुणमाणस्स कहं समणेण ण सा कहेयव्वा // 212 // नि०-समणेण कहेयव्वा तवनियमकहा विरागसंजुत्ता / जंसोऊण मणुस्सो वच्चइ संवेगनिव्वेयं // 213 // नि०- अत्थमहंतीवि कहा अपरिकिलेसबहुला कहेयव्वा / हंदि महया चडगरत्तणेण अत्थं कहा हणइ // 214 // नि०-खेत्तं कालं पुरिसंसामत्थं चऽप्पणो वियाणेत्ता। समणेण उ अणवजा पगयंमि कहा कहेयव्वा // 215 // तइयज्झयणनिजुत्ती समत्ता॥ धर्मः- प्रवृत्यादिरूपः अर्थो- विद्यादिः कामः- इच्छादिः उपदिश्यते-कथ्यते यत्र सूत्रकाव्येषु सूत्रेषु काव्येषु च- तल्लक्षणवत्सु, वेत्यत आह-लोके-रामायणादिषु वेदे- यज्ञक्रियादिषु समये- तरङ्गवत्यादिषु सा पुनः कथा मिश्रा मिश्रानाम, संकीर्णपुरुषार्थाभिधानात् इति गाथार्थः॥२०६॥उक्ता मिश्रकथा, तदभिधानाच्चतुर्विधा कथेति / साम्प्रतं कथाविपक्षभूतां त्याज्यां विकथामाह, अज्ञातस्वरूपायास्त्यागासंभवादिति-स्त्रीकथा एवंभूता द्रविडा इत्यादिलक्षणा भक्तकथा सुन्दरः शाल्योदन इत्यादिरूपा राजकथा अमुकः शोभन इत्यादिलक्षणा चौरजनपदकथा च गृहीतोऽद्य चौरः स इत्थं कदर्थितस्तथा रम्यो मध्यदेश इत्यादिरूपा // 183 //