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________________ अपक्ष्यासा, तृतीयमध्ययनं श्रीदशवैकालिकं श्रीहारि० वृत्तियुतम् // 176 // कथा। इति वचनात्, शिक्षा च कलासु कामाङ्ग वैदग्ध्यात्, उक्तं च-कलानां ग्रहणादेव, सौभाग्यमुपजायते / देशकालौ त्वपेक्ष्यासां, प्रयोगः संभवेन्न वा॥१॥अन्ये त्वत्राचलमूलदेवी देवदत्तांप्रतीत्येक्षुयाचनायांप्रभूतासंस्कृतस्तोकसंस्कृतप्रदानद्वारेणोदाहरण | क्षुल्लिका चारकथा, मभिदधति, दृष्टमधिकृत्य कामकथा यथा नारदेन रुक्मिणीरूपं दृष्टा वासुदेवे कृता, श्रुतं त्वधिकृत्य यथा पद्मनाभेन राज्ञा नियुक्तिः नारदाद्रौपदीरूपमाकर्ण्य पूर्वसंस्तुतदेवेभ्यः कथिता, अनुभूतं चाधिकृत्य कामकथा यथा- तरङ्गवत्या निजानुभवकथने, 193-205 संस्तवश्व-कामकथापरिचयः 'कारणानी' ति कामसूत्रपाठात्, अन्ये त्वभिदधति- सइदंसणाउ पेम्मं पेमाउरई रईय विस्संभो। कथानिक्षेपे आक्षेपण्यादि विस्संभाओ पणओ पञ्चविहं वड्डए पेम्म // 1 // इति गाथार्थः / उक्ता कामकथा, धर्मकथामाह चतुर्विधधर्म नि०- धम्मकहा बोद्धव्वा चउव्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता। अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वेए।।१९३॥ नि०- आयारे ववहारे पन्नती चेव दिट्ठीवाए य। एसा चउव्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ // 194 // नि०-विजा चरणंच तवो पुरिसक्कारोय समिइगुत्तीओ। उवइस्सइखलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइरसो॥१९५॥ नि०- कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा। मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया॥१९६ // नि०- जा ससमयवज्जाखलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता। परसमयाणंच कहा एसा विक्खेवणी नाम // 197 // नि०- जा ससमएण पुट्विं अक्खाया तं छुभेज परसमए। परसासणवक्खेवा परस्ससमयं परिकहेइ॥१९८॥ नि०- आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए। एसा चउव्विहा खलु कहा उ संवेयणी होइ॥१९९॥ नि०-वीरियविउव्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी। उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो॥२०॥ नि०- पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ / इह य परत्थ य लोए कहा उणिव्वेयणी नाम / / 201 // // 176 //
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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