SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 213 // सूत्रम् 144 द्वादशाङ्गम् अनुत्तरोपपातिक: नास्याभिप्रायमवगच्छामः, तथा संख्यातानि पदशतसहस्राणि पदाणेति, तानि च किल त्रयोविंशतिर्लक्षाणि चत्वारि च सहस्राणीति // 8 // // 143 // से किंतं अणुत्तरोववाइयदसाओ?, अणुत्तरोववाइयदसासुणं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई उजाणाईचेइयाई वणखंडा रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइंधम्मायरिया धम्मकहाओइहलोगपरलोगइडिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओसुयपरिग्गहा तवोवहाणाई परियागोपडिमाओसंलेहणाओ भत्तपाणपञ्चक्खाणाइंपाओवगमणाई अणुत्तरोववाओसुकुलपच्चायाया पुणो बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविखंति, अणुत्तरोववाइयदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परमंगल्लजगहियाणि जिणातिसेसा य बहुविसेसा जिणसीसाणंचेवसमणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणंपरिसहसेण्णरिउबलपमद्दणाणंतवदित्तचरित्तणाणसम्मत्तसारविविहप्पगारवित्थरपसत्थगुणसंजुयाणं अणगारमहरिसीणंअणगारगुणाणवण्णओउत्तमवरतवविसिट्ठणाणजोगजुत्ताणंजह य जगहियं भगवओ जारिसा इविविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउब्भावाय जिणसमीवंजह य उवासंति जिणवरंजह य परिकहति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणंसोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्मविसयविरत्ता नरा जहा अब्भुवेंति धम्ममुरालं संजमंतवं चावि बहुविहप्पगारं जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहियनाणदंसणचरित्तजोगा जिणवयणमणुगयमहियं भासित्ता जिणवराण हिययेण मणुण्णेत्ता जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेअइत्ता लळूण य समाहिमुत्तमज्झाणजोगजुत्ता उववन्ना मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं तओ यचुआ कमेण काहिंति संजया जहा य अंतकिरियं एए अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेजाओ संगहणीओ, से णं अंगठ्ठयाए नवमे अंगे एगे सुयखंधे दस अज्झयणा तिन्नि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेजाई पयसयसहस्साई पयग्गेणं प०, संखेन्जाणि अक्खराणि // 21B
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy