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________________ श्रीअभय० सूत्रम् 143 द्वादशाङ्गम् अन्तकृद्दशा वृत्तियुतम् श्रीसमवायाङ्कनुपमानि क्रमेण भुक्त्वोत्तमानि ततः आयु:क्षयेण च्युताः सन्तो यथा जिनमते बोधिं लब्ध्वा इति शेषः लब्ध्वा च संयमोत्तम- प्रधान संयमतमोरजओघविप्रमुक्ता-अज्ञानकर्मप्रवाहविप्रमुक्ता उपयन्ति, यथा अक्षयं-अपुनरावृत्तिकं सर्वदुःखमोक्षं कर्मक्षयमित्यर्थः, // 211 // तथोपासकदशास्वाख्यायत इति प्रक्रमः, एते चान्ये चेत्यादि प्राग्वन्नवरं संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं ति किलैकादश लक्षाणि द्विपञ्चाशच्च सहस्राणि पदानामिति // 7 // // 142 // से किंतं अंतगडदसाओ?, अंतगडदसासुणं अंतगडाणंणगराइं उज्जाणाइंचेइयाईवणाईराया अम्मापियरोसमोसरणा धम्मायरिया धम्मकहा इहलोइयपरलोइअइड्डिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वजाओसुयपरिग्गहा तवोवहाणाईपडिमाओ बहुविहाओखमा अज्जवं मद्दवंचसोअंच सच्चसहियं सत्तरसविहो य संजमो उत्तमंच बंभं आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओचेव तह अप्पमायजोगो सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाई पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो परियाओ जत्तिओ यजह पालिओ मुणिहिं पायोवगओय जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेअइत्ता अंतगडो मुनिवरोतमरयोघविप्पमुक्को मोक्खसुहमणंतरं च पत्ता एए अन्ने य एवमाइअत्था वित्थारेणं परूवेई, अंतगडदसासुणं परित्ता वायणा संखेज्जा अणु ओगदारा जावसंखेन्जाओसंगहणीओ, जाव सेणं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा सत्त वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता संखेज्जा अक्खरा जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघविखंति, सेतं अंतगडदसाओ॥८॥सूत्रम् 143 // से किं त मित्यादि, अथ कास्ता अन्तकृतदशाः?, तत्रान्तो-विनाशः, स च कर्मणस्तत्फलस्य वा संसारस्य कृतो यैस्ते 0 आयुष्कक्षयेण (मु०)। // 211 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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