________________ श्रीसूत्रकृताङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः 2 // 611 // श्रुतस्कन्धः२ द्वितीयमध्ययन क्रियास्थानम्, सूत्रम् 38 (673) आनारम्भादिगुणा: चउदसमे भत्ते अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते दोमासिए तिमासिए चाउम्मासिए पंचमासिए छम्मासिए अदुत्तरं च णं उक्खित्तचरया णिक्खित्तचरया उक्खित्तणिक्खित्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसट्ठचरगा असंसट्टचरगा तज्जातसंसट्ठचरगा दिट्ठलाभिया अदिट्ठलाभिया पुट्ठलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा उवनिहिया संखादत्तिया परिमितपिंडवाइया सुद्धेसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमडिया निव्विगइया अमज्जमंसासिणोणो णियामरसभोई ठाणाइया पडिमाठाणाइया उक्कडुआसणियाणेसज्जिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाइणो अप्पाउडा अगत्तया अकंडुया अणिट्ठहा) (एवं जहोववाइए) धुतकेसमंसुरोमनहा सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्का चिटुंति // तेणं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइंवासाइंसामन्नपरियागंपाउणंति 2 बहुबहु आबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खन्ति पञ्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदिति अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरति नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणभावे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धे माणावमाणणाओ हीलणाओ निंदणाओ खिंसणाओगरहणाओतजणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसंपरीसहोवसग्गा अहियासिजंति तमढें आराहंति, तमढें आराहित्ता चरमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं अणंतं अणुत्तरं निव्वाघातं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेंति, समुप्पाडित्ता ततो पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति // एगच्चाए पुण एगे भयंतारो भवंति, अवरे पुण पुव्वकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा- महड्डिएसु महज्जुतिएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महाबलेसु महाणुभावेसु महासुक्खेसु ते णं तत्थ देवा भवंति महड्डिया महजुतिया जाव महासुक्खा हारविराइयवच्छा कडगतुडियर्थभियभुया अंगयकुंडलमट्टगंडयलकन्नपीढधारी // 611 //