SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीयम् श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 6 // पासे आ कार्यनो प्रतिषेध निर्णीत को अने आगमकक्षमां पण प्रवेश निषेध कर्यो अने कम्प्युटरोमां कम्पोजींग-प्रूफरीडींग कार्य मात्र पुरुषवर्गनां आपरेटरो-एडीटरो द्वारा कराववानो अमल कर्यो / दररोज आ कार्य ना प्रारंभथी अंत सुधी धूप-दीपना प्रज्वलनपूर्वक अपवित्रतानो नाश अने अर्चनीयतानुं स्थापन करवापूर्वक परममंगलकारी अने परमपवित्र आगमग्रंथोनी गरिमा जाळववानो यथाशक्य प्रयास कर्यो। जो के आकार्य तो मात्र पुनःसम्पादन- छ। प्राचीनहस्तप्रतोमांथी संशोधनकार्यनो अथाग प्रयत्न तो आगमोद्धारक पूज्य सागरजी महाराज (पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज) आदिको छे जेनो श्रेय तो तेओना फाळेज जाय छ। अन्य संशोधको अने संपादनोनो आसंपादनमां उपयोग कर्यो छे तेनो उल्लेख ते ते स्थळोजेको छ। गणिपिटक ओटले आचार्यभगवंतोनी अत्यंत किंमती अने गुप्त संपत्ति / तेनोदुरुपयोग न थाय माटे साधु-साध्वीभगवंतोने उपयोगमां आवतां ज्ञानभंडारो तथा पू. आचार्यादि गुरुभगवंतो जेमने जरूर हशे तेमने वितरण करवानुनक्की कर्यु छ / ट्रस्टीगण श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्रीपालनगर, 12 जमनादास मेहता मार्ग, वालकेश्वर, मुंबई - 400006. विक्रम सं० 2063 वीर सं०२५३३ // 6
SR No.600432
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages538
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy