________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 144 // अंकावईओ दो पम्हावईओ दो सुभाओ दो रयणसंचयाओ दो आसपुराओ दो सीहपुराओ दो महापुराओ दो विजयपुराओ दो द्वितीयमध्ययन अपराजिताओ दो अवराओ दो असोयाओ दो विगयसोगाओ दो विजयातो दो वेजयंतीओ दो जयंतीओ दो अपराजियाओ दो द्विस्थानम्, तृतीयोद्देशक: चक्कपुराओ दो खग्गपुराओ दो अवज्झाओ दो अउज्झाओ 32 दो भद्दसालवणा दोणंदणवणा दो सोमणसवणा दो पंडगवणाई सूत्रम् दो पंडुकंबलसिलाओ दो अतिपंडुकंबलसिलाओदो रत्तकंबलसिलाओ दो अइरत्तकंबलसिलाओ दो मंदरा दो मंदरचूलिताओ, 8 91-93 वेदिकोच्चत्वम्, धायतिसंडस्सणं दीवस्स वेदिया दो गाउयाई उद्धमुच्चत्तेणं पन्नत्ता ।।सूत्रम् 92 // धातकीकालोदस्सणं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उई उच्चत्तेणं पन्नत्ता। पुक्खरवरदीवड्पुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं पूर्वापरार्द्धयोः दोवासा पं० बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव तहेव जावदो कुराओपं० देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव, तत्थणं दो महतिमहालता पदार्थद्वयम्, कालोदवेमहहुमा पं० तं०- कूडसामली चेव पउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पउमे चेव, जाव छव्विहंपि कालं पञ्चणुभवमाणा दिकोच्चत्वम्, विहरंति / पुक्खरवरदीवड्डपच्चच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पं० तं०- तहेवणाणत्तं कूडसामली चेव महा- पुष्करार्द्धद्वये क्षेत्रादिद्विकम् पउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पुंडरीए चेव, पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाई दो एरवयाइं जाव दो मंदरा दो मंदरचूलियाओ, पुक्खरवरस्सणं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उद्दमुच्चत्तेणं पन्नत्ता, सव्वेसिंपिणं दीवसमुद्दाणं वेदियाओ दो गाउयाई उद्दमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ॥सूत्रम् 13 // जंबू इत्यादि कण्ठ्यम्, नवरं वज्रमय्या अष्टयोजनोच्छ्रायायाश्चतुर्दादशोपर्यधोविस्तृताया जम्बूद्वीपनगरप्राकारकल्पाया // 144 // जगत्या द्विगव्यूतोच्छ्रितेन पञ्चधनुःशतविस्तृतेन नानारत्नमयेन जालकटकेन परिक्षिप्ताया उपरिवेदिकेति पद्मवरवेदिकेत्यर्थः, पञ्चधनुःशतविस्तीर्णा गवाक्षहेमकिङ्किणीघण्टायुक्ता देवानामासनशयनमोहनविविधक्रीडास्थानमुभयतोवनखण्डवतीति॥