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________________ श्रीआचाराङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 651 // श्रुतस्कन्धः२ | चूलिका-१ | द्वितीयमध्ययन | शय्यैषणा, | तृतीयोद्देशक: सूत्रम् 331-333 | भूमिप्रतिलेखनादिः इति, तथाऽन्तेन वेत्यादीनां पदानां तृतीया सप्तम्यर्थ इति // 330 // इदानीं शयनविधिमधिकृत्याह से भिक्खू वा० बहु० संथरित्ता अभिकंखिज्जा बहुफासुए सिज्जासंथारए दुरुहित्तए / / से भिक्खू० बहू दुरूहमाणे पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्यिय 2 तओ संजयामेव बहु० दुरूहित्ता तओ संजयामेव बहु० सइब्जा।सूत्रम् 331 // से इत्यादि स्पष्टम् // 331 // इदानीं सुप्तविधिमधिकृत्याह से भिक्खू वा० बहु० सयमाणे नो अन्नमन्नस्स हत्थेण हत्थं पाएण पायं काएण कायं आसाइजा, से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु० सइजा॥१॥से भिक्खू 2 वा उस्सासमाणे वा नीसासमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वायनिसगंवा करेमाणे पुवामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहित्ता तओ संजयामेव ऊससिज्जा वा जाव वायनिसगंवा करेजा // सूत्रम् 332 // निगदसिद्धम्, इयमत्र भावना-स्वपद्भिर्हस्तमात्रव्यवहितसंस्तारकै: स्वप्तव्यमिति // एवं सुप्तस्य नि:श्वसितादिविधिसूत्रमुत्तानार्थम्, नवरं आसयंव त्ति आस्यं पोसयं वा इत्यधिष्ठानमिति // 332 // साम्प्रतं सामान्येन शय्यामङ्गीकृत्याह___ से भिक्खू वा० समा वेगया सिज्जा भविजा विसमा वेगया सि० पवाया वे० निवाया वे० ससरक्खा वे० अप्पससरक्खा वे० सदसमसगा वेगया० अप्पदंसमसगा० सपरिसाडा वे० अपरिसाडा० सउवसग्गा वे० निरुवसग्गा वे०॥१॥तहप्पगाराहि सिजाहिं संविजमाणाहिं पग्गहियतरागं विहारं विहरिज्जा नो किंचिवि गिलाइज्जा / / 2 // एवं खलु० जंसव्वढेहिं सहिए सया जएत्तिबेमि॥ सूत्रम् 333 // 2-1-2-3 // सुखोन्नेयम्, यावत्तथाप्रकारासु वसतिषु विद्यमानासु प्रगृहीततर मिति यैव काचिद्विषमसमादिका वसति: संपन्ना तामेव // 651 //
SR No.600431
Book TitleAcharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size15 MB
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