SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः 2 // 650 // स भिक्षुः प्रातिहारिकं संस्तारकं यदि प्रत्यर्पयितुमभिका देवंभूतं जानीयात् तद्यथा- गृहकोकिलकाद्यण्डकसंबद्धमप्रत्युपेक्षणयोग्यं ततो न प्रत्यर्पयेदिति / / 327 // किञ्च से भिक्खू० अभिकंखिन्जा सं० से जं० अप्पंडं० तहप्पगारं० संथारगं पडिलेहिय 2 प० 2 आयाविय 2 विहणिय 2 तओ संजयामेव पञ्चप्पिणिज्जा / / सूत्रम् 328 // सुगमम् / / ३२८॥साम्प्रतं वसतौ वसतां विधिमधिकृत्याह__ से भिक्खू वा० समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव पन्नस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहिज्जा, केवली बूया आयाणमेयं-अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, से भिक्खूवा० राओ वा वियाले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलिज्ज वा 2, से तत्थ पयलमाणे वा 2 हत्थं वा पायं वा जाव लूसेज व पाणाणि वा 4 ववरोविजा, अह भिक्खूणंपु० जंपुवामेव पन्नस्स उ० भूमि पडिलेहिज्जा // सूत्रम् 329 // सुगमम्, नवरंसाधूनांसामाचार्येषा, यदुत-विकाले प्रश्रवणादिभूमय: प्रत्युपेक्षणीया इति॥३२९॥साम्प्रतं संस्तारकभूमिमधिकृत्याह से भिक्खू वा० अभिकंखिज्जा सिज्जासंथारगभूमिं पडिलेहित्तए नन्नत्थ आयरिएण वा उ० जाव गणावच्छेएण वा बालेण वा वुड्डेण वा सेहेण वा गिलाणेण वा आएसेण वा अंतेण वा मज्झेण वा समेण वा विसमेण वा पवाएण वा निवाएण वा, तओ संजयामेव पडिलेहिय 2 पमन्जिय 2 तओ संजयामेव बहुफासुयं सिज्जासंथारगं संथरिजा॥सूत्रम् 330 // स भिक्षुराचार्योपाध्यायादिभिः स्वीकृतां भूमिं मुक्त्वाऽन्यां स्वसंस्तरणाय प्रत्युपेक्षेत, शेषं सुगमम्, नवरमादेशः-प्राघूर्णक श्रुतस्कन्धः२ चूलिका-१ द्वितीयमध्ययनं शय्यैषणा, तृतीयोद्देशकः सूत्रम् 328 | संस्तारकप्रतिमा सूत्रम् 329-330 भूमिप्रतिलेखनादिः // 650 //
SR No.600431
Book TitleAcharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy