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________________ भुवन चरित्रं // 9 // लविजन कवि वि व wwali la समर्थ एष इत्येवं / चित्ररूपश्च कीर्तितः // असंख्यैर्नारकः पात्र-देवमानवसंभवैः // 1 // तिर्यग्पा त्रैरनंतैस्तु / मोहराजेन सूत्रितं // नाटकं नर्तयन्नेष / उल्लसत्येव तत्प्रियः // 2:: चारित्रधर्मपक्षेऽसो / शुभरूपः प्रवर्तते // अन्यदा मोहराजस्य / पक्षं पोषयतेऽपि च // 3 // यत्रासौ वर्तते पक्षे / जयस्तस्यैव / / | निश्चितः // पराजयोऽन्यपक्षस्य | तत्साधारणता ततः // 4 // सैन्यद्वयेऽपि विज्ञाय / रुष्टो मोहनराधिपः / // अन्यदा तं बभाषे च / यथा तव सदा वयं // 5 // हितं कर्मः प्रियं वच्मो। वर्तयामो भवत्प्रियं // नाटकं प्रयता एत-नित्यमेते तु वैरिणः // 6 // सदागमाद्यास्तद्गं / कुर्वते नित्यमेव हि // आकृष्य येन पात्राणि / निवृती प्रक्षिपंति ते // 7 // कुलकं // तथापि पक्षमेतेषा-माश्रित्यैते वयं सदा // न चूर्णिता भवतैकेन / न विद्मः केन हेतुना // 8 // चेष्टां हि को विजानाति / तवेमां चित्ररूपिणी // 1 ततो विहस्य शीर्ष च / चुंबित्वालिंग्य चादरात् // 3 // कर्मसंचयभूपालः / साश्रुनेत्रोऽब्रवीदमुं / वत्स a जानामि तच्चेष्टां / यत्त्वं ब्रूषे तथैव तत् // 4 // युग्मं // निर्मूल्य सततं चाज्ञां / रमंते ते ममापि हि // तथापि किं करोम्यत्र / दाक्षिण्यमिदमीदृशं // 5 // अनंतकालादायात–मेतैरपि समं मम // कुवें | कदाचित्तत्किंचि-चिरात्तेषामपि प्रियं // 6 // युग्मं // यूयमेव पुनश्चित्ते / सदैवावस्थिता मम // तद् [D ME D DID DESILD DID @ DOOD / / / 9 / / ज
SR No.600428
Book TitleBhuvanbhanu Kevali Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrahans Gani
PublisherVitthalji Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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