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________________ नक्ताः / नो निवृत्तं / पुराकृते कर्मणि च प्रवृनं // ततोऽन्यदा जैनमुनिं प्रणम्य / पान पुत्रो जविता न | | वा मे // 5 // भक्तामरस्तोत्रजपं तपस्वा / समादिदेशादिविलुपनावान् // चक्रेश्वरी ते च वरं सु. तार्थ प्रदास्यति दोणिप मा विषीद // 6 // . अयादिदेवं कमलादिपुष्पै-रान चक्रां विरचय्य चित्ते // को विस्मयोऽत्र स्मरणदणे श्री. -हाला वरं प्राप दिनत्रयांते // 7 // पुष्पत्र हालिमहीशराझी-कंठे निवेश्यांगजजन्मनेऽसौ // चक्रा तदैवांतरधाच्च देवी / मुमोद सापि स्तनिताबिखीव // 7 // गर्न दधाना नरराजपत्नी / जि नार्चनादिशुजकार्यसक्ता // वरेण्यतदोहदलदणं सा / मुक्ताफलं शुक्तिरिवाशु दः // ए॥ प्रात्री वनानुं नरदेवदेवी / प्रामृत सुनुं समये सुदीप्तं / / व्यधान्नृपो जन्ममहं च चक्रा-दासं च नाग्ने त वराप्तितश्च // 10 // कलास्तु शुक्लप्रतिपबशीव / गृह्णन् विवृति वपुषा स प्राप्तवान् // संतोषपन् ऋमिपतिं सहर्ष / रराज सद्वृत्ततया कुमारः // 11 // तरंस्तरण्याथ नृपस्तरंगिणीं / ददर्श मीन प्र हसतमुच्चकैः // अपृलदार्तश्चतुरांस्त चिरे / प्रजानिये स्यादिकृतस्य दर्शनं // 12 // न तद्गिरा सोऽ. | थ धृतिं दधार / नितांतमंतर्विभयांचकार // बन्येरुद्यानमसौ ससार / जैन मुनि तत्र नमश्चकार
SR No.600426
Book TitleBhaktamar Stotra Satikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMantungasuri, Gunakarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1918
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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