________________ भक्ता- // 13 // पृष्टोऽथ राझा ऊषहास्यहेतु-मुवाच वाचंयमसत्तमस्तं // नभावनुतामिह दारुभार-वाहो / || पुरे निर्धनतझनाही // 14 // तावेकदा काष्टकृते वनं गतौ / मैत्रीयुतौ सक्थुकमात्रशंवलौ // मूर्या कृशं धर्मतपोऽकृशं भृशं / श्वेतांबरं साधुमुभावपश्यतां // 15 // मासोपवासव्रतपारणार्थिने-ऽमुष्मै वितीर्ण तनु सक्थुनोजनं / / बीजं सुभृमाविव जावपाथसा / सिक्तं महत्पुण्यकणाय जायते // 16|| | स निर्धनस्तघ्नमित्युवाच / स माह चैनं मम नात्र नावः / / कष्टादुषात्तं निजवस्तु दत्तं / प्रत्यदहा निः कथमेष लाभः // 17 // युग्मं // तसर्वयाहं निजसक्थुनाग-मस्मै न दास्यामि शरीरपुष्टयै // नोदये स्वयं दानगुणेन कीर्ति / लनेत लक्ष्मीपतिरेव नान्यः // 10 // इति ध्वनंतं तमुपेक्ष्य तघ्नं / स निर्धनस्तस्य निपत्य पढ्वये // तपखिने स्वीयविनागसक्थुकान् / ददे सुगत्या मुमुदे च चेतसा // 15 // वनांतवर्ती किल कश्चनामर-स्तदा मुदाश्लाघत साधु साध्वहो // प्रदानमेते. न कृतं प्रणम्य तौ / ततो गतौ संचितपुण्यपातकौ // 20 // यत नक्तं-समानेऽपि हि दारिद्ये / चित्तवृत्तेरहोंतरं / / श्रदत्तमिति शोचंते / न लब्धमिति चापरे // 21 // एवं स निर्घनो दानमषरत, नक्तं च-पानंदाश्रूणि रोमांचो / बहुमानं प्रियं वचः // किंचानुमोदना पात्र-दानऋषणपंचकं //