________________ भक्ता सटीक 69 धुना समर्ग जनाः // 15 // इति श्रुत्वा नरेंद्रेण / जैनो धर्मः समाश्रितः // सकले मंगले कनृप्ता / जीवरदा शुनावहा // 20 // राझीभिश्च गुरोः पार्श्वे / प्रपेदे धर्म पाहतां // विशुधमा. वनाराजि-चेतोभिः पंचमीतपः // 21 // प्रासादान कारयामास / जैनानुत्तुंगतोरणान // जिना. चर्चानां प्रतिष्टाश्च / गुरुवाक्याऊनेश्वरः // 25 // प्रजावनां जैनमतस्य कृत्वा-सौ साधवीं धर्मधुरं च धृत्वा / दिवं ययौ शुधसमाधिनव्यः / श्रीशांतिसूरिः सुरराजसेव्यः // 23 // इति षोडशी कथा / / // 16 // अथ पुनर्जिनं नमनाह // मूलम् ॥-तुत्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ / तुन्यं नमः दितितलामल भूषणाय | तु. न्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय / तुज्यं नमो जिन नवोदधिशोषणाय / / 16 // व्याख्या हे नाथ! तुभ्यं नवते नमः, तुन्यमित्यत्रैकवचनकारणं सर्वदेवपरिहारेण नगवते एकस्मै नमः, नमस्कारोऽ. स्तु, नमस्शब्दोऽव्ययः. किंचताय? त्रिवनातिहराय, सहचोंतःकरणान्यां विश्वत्रयपीडानाशनाय, यः सर्वेषां कृत्रहंता स एव वंधः. हे स्वामिन् ! तुन्यं नमोऽस्तु, वितितलस्य नृपीठस्यामल ऋषणाय निर्मलालंकाराय, यो विमलकलया जुवमलंकुरुते स नमस्यः. अथवा दितिः पृथ्वी, तलं पातालं.