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________________ सटीक नक्ता अमलं स्वर्गस्तेषां त्रयाणां लोकानां ऋषणाय, हे ईश तुल्यं नमोऽस्तु. त्रिजगतस्त्र तोक्यस्य परमेश्वः / / राय प्रकृष्टनाथाय, यो जगदीशः स नम्य एव. हे जिन! तुभ्यं नमोऽस्तु, भवोदधिशोषणाय संसा. रसागरसंतापनाय, यो दुरंतं संसृतिजलधिं शोषितवान , स नमस्काराई 'एवेति वृत्तार्यः // 26 // मंवोऽप्यत्र-ॐ श्री ही क्वी महालदम्यै नमः. सुरनिसद्यस्कपीतपुष्पैलंदाजापासिधिः. महिमकया यथा-श्रेष्टी चनिकनामा यः / पत्तने र्गतोऽभवत् // तुन्यं नमोनमस्कारात / श्रिया स्वर्णपतीकृ. तः // 1 // श्रीखणहिल्लवाटके श्रीमालवंश्यो निःस्वो वणिगेकोऽवसत , स परिसरग्रामेषु शिरःपुटलकैश्चनकविक्रयणाचनिक इति प्रतीतः. तस्यैकदा ग्रामं गलतो मार्गे श्रीनद्योतनसूरयो गुस्खो मिलितः, तेन भक्तिपूर्व वंदिताः, श्रीगुरुन्निधर्मपृचा कृता, तेनोक्तं प्रनो! दौथ्ये को धर्मनिर्वाहः? सर्वत्र परायते दरिद्रः, नक्तं च-पंथसमा नबि जरा | दरिद्दसमो पराभवो नहि // मरणसमं न. हि भयं / बुहासमा वेषणा नचि // 1 // गुरुभिरूचे-धर्मानं धनत एव समस्तकापाः / का | मेन्य एव सुखमिंद्रियजं समग्रं // कार्यार्थिना हि खलु कारणमेषणीयं / धर्मो विधेय इति तत्ववि| दो वदंति // 1 // अथ त्वया भक्तामरस्तवस्य पदविंशं वृत्तं गाणं नाणं पंचाशरपार्श्वदेवो नमस्क /
SR No.600426
Book TitleBhaktamar Stotra Satikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMantungasuri, Gunakarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1918
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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