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________________ मटाक जता सि कुरिर्गुणाग्रणी // विहृतस्तां पुरी पोरे-रनिगम्य प्रवेशितः // ए॥ प्रतुनक्तामरस्तोत्र-च. | तुर्विशादिवृत्ततः // सिष्चक्रेश्वरीकृत-महाशक्तिसमन्वितः // 10 // विचेताश्चिंतया जुपो / न चा. कारयतिस्म तान् // प्रनावनां कर्तुकामा-नपि राझीचिकित्सया // 11 // ततोऽवधूतवेषेण-ब्रा. म्यन्नृपगृहांतिके / निर्दोष नीरज ग्लानं / करोमीति वदन विभुः // 12 // याकर्ण्य तहचो रा. जा। सूरीनाकार्य कार्यवित // हैमे पीठे निवेश्योच्चै-रंतःपुरमदीदृशत // 13 // प्रसद्य नगवन् स. यो / राझीजीवितदानतः // मम जीवसमुघारं / कुरु राज्यं गृहाण च // 14 // इति विज्ञापितः सूरि-दूरीकृत्य पुराकृतान // रदौषधिमणीमंत्र-कंमकांस्तत्तनुस्थितान् // 15 // बानाय्य नीरं प्रदाव्य / स्वाही गुरुन्निरर्पितं // राझोपात्तं प्रहृष्टेन! स्थितेनेव सेवधिः // 16 // तदंबुसेचनात्पानाचक्रायाश्च प्रसादतः // प्रणेशुयैतराः क्रूराः / सूरादिव दिवांधिका // 17 / / दासप्ततिः स्फुरदेष-नु. षणा गतदूषणाः // निर्मिता नृपसुंदर्यः / शांतिसूरिमुनींदुना // 17 // ततो गुरुपार्श्व धर्ममश्रौषीत् सपरिवारो नृपः, तद्यथा-झानादित्रितयोरुशालकलितं शीलांगसंज्ञैः पुरः / सत्सूत्रैः कपिशीर्षकैः परिंगतं दानादिसद्गोपुरं // दात्यााचदशप्रकारविगलद्यत्रं शमांनोनिधि / नीताः कर्म रिपोः श्रयध्वम
SR No.600426
Book TitleBhaktamar Stotra Satikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMantungasuri, Gunakarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1918
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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