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________________ जक्ता- महीणं च सबकामयरो // सग्गापवगसंगम-हेक जिणदेसिन धम्मो // 1 // किंच-धम्मविहु- // प णा न सुखं विधाणहि / घरघरि पाणिन इंधणु थाणहि // खंडहिं दलहिं करहिं विलोषणु / तहवि न पाव किंचिवि नोपा // 2 // अधमजातिरनिष्टसमागमः / प्रियवियोगभयानि दरिद्रता अपयशः किल लोकपरानवो / भवति पापतरोः फलमीदृशं // 3 // तं पुन्नयहिनाणु / जगहि. लाणवि रबडी // तं पुण पापपमाणु / जं गुणवंतह भिकडी // 4 // अहो श्वेतांवरमहर्षिणा म. दुचितो धर्मोपदेशो दत्त इति मत्वा मुनिवचः श्रुत्वा जिनधर्मागीकरणार्थी भक्तामरस्तवमध्येष्ट, न. क्यवंध्यं त्रिसंध्यं शश्वऊपतिस्म च. एकदा-यबविहुणो पुरिसो / सुवंसजानवि लहर लहुयत्तं | // पाव परिनवगणं / गुणरदिन धणुदंभव // 1 // इति विमृश्य सुमतिर्धनार्जनचिकीः समुद्रतटपुरं गत्वा पोतमारुरोह. क्रमेण बोहिङेबुधिमध्यंगते कल्पांतवाता व उर्वाता ववुः. पूर्व कादंबिनीतिमिरपटली प्रबलदवानलधूमावलीव नभोमंडलमरोत्सीत. रादासीनेत्रकांतिकीलेव विद्यक्षता घनम| ध्ये चानासीत्. नाविकजनश्रवोदुःश्रवं स्तनयित्नुस्तनितं निर्घातपातसममन्त्. पीतमद्या व साग / / रोयश्चेतस्ततश्चरंतिस्म.तिमितिमिंगलपाठीनपीठनकचक्रमकरशिशुमारादिदुष्टजलचरजंतुवारानुकुलः.
SR No.600426
Book TitleBhaktamar Stotra Satikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMantungasuri, Gunakarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1918
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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