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________________ जक्ता / भरेण तोयेण / जलहरा फलभरेण तरुसिहरा // विणएण य सुपुरिसा / नमति न हु कस्स य सटीक जएम // 2 // विलदो लज्जितोऽनवदाजा, विरक्तमनाः स्वचेतसि चिंतयामास-अर्थ धिगस्तु बहुवैरकर नराणां / राज्यं धिगस्तु सततं बहुशंकनीयं / / रूपं घिगस्तु नियतं परिहीयमानं / देहं 103 धिगस्तु परिपुष्टमपि प्रणाशि // 1 // यय च-अवश्यं यातारश्चिस्तरमुषित्वापि विषय | वियोगे को नेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममुन् / व्रतः स्वातंत्र्यादतुलपरितापाय मनसः / स्वयं त्यक्ता ह्ये ते शमसुखमनंतं विदधति // 1 // तथा यदि मया पूर्व स्त्रीवचसि प्रत्ययः कृतस्तदैव रणे मम मान नंगो जातः. अतो धिगस्तु ताः, याः स्वार्थरता बनर्थसाथै दिपंति पुरुषं. पुमानपि नदामक्तोऽ. चेतनो भवति. उक्तं च-तावदेव पुरुषः सचेतन-स्तावदाकलयति क्रमाक्रमौ // यावदेव न कु रंगचक्षुषां / ताड्यते चपलालोचनांचलैः // 1 // अथवा-संपीडथवा हिंदंष्ट्रामि-यमजिह्वाविषांकु. रान् / जगअिघत्सुना नार्यः / कृताः क्रूरेण वेधसा // 5 // संसारवनपर्यंत-पदवी न दवीयसी॥ अंतरा दुस्तरा न स्यु-श्वेनद्यो मदिरेदणाः // 3 // इत्यादि विचिंत्य राज्ञा सामंत सह प. | लोच्य सङितो राज्याभिषेकविधिः, ततो गुणवर्माणं सिंहासने धिरोप्य तीर्थजलैरन्यसिंचनरेंडः, /
SR No.600426
Book TitleBhaktamar Stotra Satikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMantungasuri, Gunakarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1918
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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