________________ | हरसिद्धिप्रभावेन राक्षसं परितोष्य च // संप्राप्यानुमतिं तस्य वासयिष्याम्यहं पुरम् // 396 // विचिंत्येति कुमारोऽपि प्रत्यावर्त्य ततः स्थलात् // सावलिंगा स्थिता यत्र प्रत्यागात्तत्र सस्वरम्॥३९७॥ अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् // निर्धना पृथिवी नास्ति भाग्यमेकं हि चेद् भवेत् // 398 // निरीहस्य निधानानि प्रकाशयति मेदिनी // अंगोपांगानि डिंभानां न गोपायति कामिनी // 399 // | अवं चिंतयता तेन कियत्कालादनंतरम् // ताम्रचूडेरिताः शब्दाः श्रुतास्तत्र महात्मना // 400 // KE अरूणः प्रकटीभूतः कासारे कमलान्यपि // अवं जाते प्रभातेऽसौ गतनिद्रो बभूव ह // 1 // सावलिंगा विनिद्रापि जाता पश्चादसौ ततः // विलोकयति नेत्राभ्यां यावच्च सर्वतोदिशम् // 2 // सौवर्णमणिमाणिक्यमौक्तिककोटि संयुतम् // लक्ष्मीलीलायितं दृष्ट्वा प्रीत्योवाच प्रियां प्रति // 3 // बलिपूजां विना सर्व गृहीतुं नोचितं धनम् // समयेऽतो गृहिष्यामि बलिविधानपूर्वकम् // 4 // Ka अत्वरा फलदा ज्ञेया त्वरा कार्यविनाशिनी // त्वरमाणेन मूर्खेण मयूरो वायसीकृतः // 5 // कस्मिन्नपि महाग्रामे दरिद्रेणाथ केनचित् // द्विजेनाराधितो यक्षस्तुष्टस्य याचितं धनम् // 6 // तदा यक्ष उवाचेदं विप्र भाग्ये धनं न ते // द्विजेनोक्तं तथापि त्वं देहि मे तन्महद्धनम् // 7 //