________________ चरित्रम् श्री सदैववत्सा तच्छ्रुत्वा सा च वृद्धा स्त्री पात्रं जलभृतं तदा // 362 // गृहित्वा तेन सार्द्ध वै चलिता सोऽवदत्तदा // सदयवसको धीरो हेमातर्मे समर्पय // 363 // जलपात्रमिदं त्वं च वृद्धत्वाद्गन्तुमक्षमा // शीघ्रं सा च पुनमें वै भार्या नास्ति विलम्बनम् // 364 // - सोढुं शक्ता च ततत्वा सा वृद्धा प्राह निश्चितम् // यापयिण्यामि तम्यै च तवैवाहं जलं दुतम्॥३६५॥ ततः शीघ्रतरं वत्सो व्रजति सापि वेगतः // चलन्ती च कुमारस्य पृष्ठत एव निश्चितम् // गच्छति सोथ वत्सश्च तदैव मानसे स्वके // 366 // चिन्तयति किलाहो वै वृद्धापि मिलितैव च ॥ममागच्छति किं तत् स पत्नीपावे ततो गतः // 36 // उक्तं च तेन हे प्राणवल्लभे त्वत्कृते मया // जलमानीतमस्तीह वृद्धया च ततस्तया // 368 // तजलभृतपात्रं वै तस्यै तत्र समर्पितम् // मुखक्षालनपूर्व सा तत्तोयं च पपौ खलु // 369 // स्वस्था चैव जलेनासौ जाता वृद्धा ततश्चसा // मार्गयति यदा शोणं कुमारेण तदा स्वकाम् // 370 / / | समुद्धाय्य नसं तत्र चक्रे शोणितकर्षणम् // परंतु रुधिरं नैव निःसरति ततस्तदा // 371 //