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________________ चारतम् श्री सदैववत्स 94 प्राय एवं स सर्वत्र जीवरक्षापरायणः // आचरहहवर्षाणि श्रावकधर्म मेव च // 10 // स गुणसुंदरः प्रांते कुमारो गुरुसादिकम् // क्षामणापूर्व माराध्य चाष्टादशविधं पुनः // 11 // पापस्थानं समालोच्य पश्चादनशनेन च // आयुः प्रपूर्य कालेन जोगफलानुभावतः // 12 // त्वमत्रोजयिनीपुयां प्रभुवत्सस्य भूपतेः // सुतोऽजनि महापुण्यात् सदयवत्स नामकः // 13 // त्वया पूर्वभवे सम्यक् श्रद्धाभक्तिपुरःसरम् // सुपात्रजेनसाधुभ्यो दत्तमन्नादिकं महत् / / 14 // तेन चेह भवे राज्यभोगावाप्तिरभूत्तव // कोऽपि पुण्यं करोत्येव मुत्तमं लभते फलम् // 15 // // तवनियमेणय मुखो दाणेणय हुंति उत्तमा भोगा॥ दव्वच्चणेण रजं अणसणमरणेणं इंदत्तं० तेन पुण्येन हे राजन् शुन्यपुरे तवाग्रतः // बहुलक्ष्म्याश्च संप्राप्तिः सांनिध्ये देवतास्तथा // 16 // जनचित्तचमत्कारी महिमा च बभूव ह // वैरिवृन्दैरजेयोऽपि जीवरक्षाप्रभावतः // 17 // निर्भयमानसश्चाभूः सुखसंपत्तिपुत्रवान् // महिमाऽतश्च पुण्यस्य नहि केनापि वर्ण्यते // 18 // निजपूर्वभवं श्रुत्वा सदयः स्वगुरोर्मुखात् // अवाप स्मरणानं जातेस्तत्कालमेव सः // 19 // निजपूर्वभवं साक्षाद् दृष्टवान् कृपया गुरोः // मुदा श्रावकधमे स प्रपद्य गुरुपार्श्वतः // 20 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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