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________________ वणिजे श्रेष्ठिनःपुत्री विप्रसुतां द्विजाय च // नृपजां क्षत्रिपुत्राय कुमारोऽदापयन् मुदा // 45 // एवं विवाहयामास मित्रत्रयं महोत्सवात् // स्वौचित्यान्न महात्मानो यतो भ्रस्यति सर्वदा // 46 // महापुरुषसेवापि कस्य न फलदायिनी // स्थानभ्रष्टो महात्मापि भवत्येवान्यपोषकः // 47 // बंधस्थानोऽपि मातंगःपरेषां भरणक्षमः // काकःखच्छंदचारोऽपि स्वोदरेणापि दुःस्थितः // 48 // | महतामाश्रयः पुसा पूज्यतादरवृद्धये // हरिपाणिस्थितःकंबुःपवित्राणां धुरि स्थितः॥४९॥ यो नात्मने न गुरवे न च बांधवाय, दीने दयां न कुरुते नच भृत्यवर्गे // किं तस्य जीवितफलं हि मनुष्यलोके, काकोऽपिजीवति चिरं च बलिं च भुंक्ते // 50 // स्वमनोरथपूर्त्यादिहृष्टा एवं सुहृद्वराः॥ तं सेवंतेस्म सस्नेहं विशेषगुणसेवधिम् // 51 // को न याति वशं लोके कवलै र्मुखपूरितः॥ मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम् // 52 // नोपकारं विना प्रीतिः कथंचित्कस्यचिद्भवेत् // उपयाचितदानेन यतो देवा अपीष्टदाः // 53 // - तावत्प्रीति भवेल्लोके यावदानं प्रदीयते // वत्सःक्षीरक्षयं दृष्ट्वा परित्यजति मातरम् // 54 // पुत्रादपि प्रियं दान महो मन्ये पशोरपि // महिषी न स्मरत्येव खलदानान्निजं सुतम् // 55 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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