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________________ चरित्रम् 82 श्री सदैववस K- तस्मै राज्ञापि मीनस्य पृष्टं हास्यस्य कारणम् // वृत्तांतांतो नवै ग्राह्यो राजन् कोऽपीत्युवाच स // 39 // गद् गृह्णन्ति कार्यस्य ये पारं पुरुषाघमाः // ते सीदंति क्षणार्धेन यथा मूखौं द्विजांगजौ // 40 // तदा राजाह नोः पान्थ कौ तौ द्विजांगजौ वद // कमलः प्राह हे राजन् वृत्तांतं तं शृणुत भोः॥४१॥ / कस्यचिद्विप्रवर्यस्य नंदिग्रामनिवासिनः // अभूतां द्वौ सुतौ राजन्नैकाग्रहपरावपि // 42 // ग्रामांतरं च गछन्तौ मागें नद्या मुपस्थितौ // वटकान् भक्षयित्वा तो हृष्टौ प्रवाह आगतान् // 43 // वर्णयामासतू राजन् तद्रसस्वाद मेव तौ // तत स्तन्निर्णयार्थं च ह्यनुनदीतटं गतौ // 44 // शुलायां रोपितस्यैकपुरुषस्य शरीरतः // निर्गतान् रक्तबिन्दुस्तौ पानीयपतितांस्तदा // 45 // वहतो वटकीभूय लोकयामासतुः पुरः // ततः संजात शोकाश्चयौं तौ केनापि बोधितौ // 46 // भो वत्सौ पुरुषोऽयं तु भाग्यवानेव ज्ञायते // करोत्येवंविधावस्थ उपकारं च भोजनात् // 17 // तेनैवं बोधितौ चापि मृतस्य रुधिरादनात् // स्वात्मानावधमौ मत्वा झंपातस्तत्र तौ मृतौ // 48 // राजन् कस्यापि कार्यस्य नांतो ग्राह्य स्ततः स्मृतः // शास्त्रेषु बहुधाप्राज्ञैः कीर्तितश्च पुनःपुनः // 49 // - इत्येवं बोधितस्तेन यावन्मासं स भूपतिः॥ न मुमोच परं राजा स च निजकदाग्रहम् // 50 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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