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________________ | सा च तेन सगर्नाऽभूत् परिणतं च तत्र तत् // तद्रसभावितो गो भूत्वा कालेन निर्गतः // 27 // KE कमलाख्यः सुतो जातो यौवन माप्तवान् क्रमात् // व्यापाराय गतो दूरे क्रमेण कनके पुरे // 28 // इतश्च नगरे तस्मिन् कनकसेनभूपतेः // एकदैको महामत्स्यः केनापि प्राभृतीकृतः॥२९॥ दास्या हस्तेन भूपेन प्रेषितोऽतःपुरे स च // जीवन्तं चाथ दृष्ट्वा तं राशीभीः कथितं तदा // 30 // | पुंलिंगधारकः कोपि नृपं विना सचेतनः // प्रवेशं लभते नात्रेति पश्चादस्ति प्रेषितः // 31 // दास्यापि स महामत्स्यः पश्चाल्लात्वा नृपान्तिके // मुक्त स्तदा नृपेणोक्तं मानीतोऽयं कुतस्त्वया // 32 // दास्या प्रोक्त मपि स्वामिन् सर्वा राझ्यः प्रतिव्रताः // संत्यन्यपुरुषं तेन स्वप्नेऽपि न स्पृशंत्यपि // 33 // तच्छ्रुत्वा स महामत्स्यो जहासाट्टाहासतः // चकितेन भयाद्राज्ञा तदा पृष्टाः बहुश्रुताः॥३॥ तद्विचारं परं कोऽपि न हि वेत्ति मनागपि // हेतुजिज्ञासुना राज्ञा पटहो वादितस्तदा // 35 // - हास्यहेतुप्रवकेऽध राजा राज्यं प्रदास्यति // घोषणा कारिता तत्र लोकानां ज्ञानहेतवे // 36 // पटहोद्धोषणं श्रुत्वा तत्रस्थकमलेन तत् // पृष्टं कुत इयं हेतोर्भवति घोषणा नराः // 37 // K| तस्मै तत्कारणं प्रोक्तं पूर्वोक्तं च जनैरपि // तं स्पृष्ट्वा कमलो राज्ञा कारितोऽथ समागतः॥ 38 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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