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________________ श्रो सदैववत्सा चरित्रम् | व्यवहारिमुखात्तस्याः श्रुत्वा वृत्तान्तमेव तत् // तेनोक्तं भो गृहे पश्चादायास्यामि धनिस्तव // 7 // पूर्वमस्य गृहे गत्वा मुक्तां सीकोत्तरीगृहात् // विधास्ये सत्वरं चैनां तच्छ्त्वा धनिकोऽवदत् // 77 // भो नरोत्तम तत्रापि यास्यसि त्वं पुनः कुतः // तत्र तु तेऽपि सामर्थ्य स्वल्पं न प्रभविष्यति // 7 // मंत्रविनिरनेकैः सा ह्येषाऽसाध्यप्रतिक्रिया // कृत्वेत्यस्ति परित्यक्ता तच्छ्रुत्वा सोऽवदत्ततः // 79 // शृणु त्वं भो महाश्रेष्ठिन्नल्पशक्क्या कदापि मे // तस्या अप्युपकारःस्यात्तथा कार्यो मया खलु // 8 // | भविष्यत्यन्यथा नो चेत् कौतुकस्य विलोकनम् // अतो वरतरं तत्र दृश्यते गमनं मम // 8 // इत्युक्त्वा स कुमारोऽथ तेनैव व्यवहारिणा // ब्राह्मणस्य गृहे तस्य जगाम सत्वरं मुदा // 8 // | हरसिद्धिं ततः स्मृत्वा यावन्निजमनस्यसौ // याति तस्याः पुरस्तावत् तेजो दृष्टं तदंगजम् // 3 // | सोढुमशक्तया शीघ्रं तयाथ भयभीतया // बझवांजलि कुमारस्य पादयोः प्रणतिः कृता // 8 // | कुमारः प्राह रे दुष्टे ब्रह्मस्त्रीबालघातिनि // अपसर द्रुतं दूरे इत्युक्तवा सा गले धृता // 85 // आच्छोटय पातिता भूमौ समुत्थाय तदा पुनः // सा कुमारं प्रति प्राह दास्यस्मि नरोत्तम // 86 // अतो मारय मा मां त्वं ब्रूते वत्स स्तदा च ताम् // यावद्दष्टे स्वया वर्ष वराकीयं च कीलिता // 87 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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