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________________ कुण्डिनं प्रति सर्वः११ // 21 // राजहंसस्य गमनम् // ISSIBILATISISile वृक्षैर्विराजितमुदीक्ष्य वनं स भेम्याः समार नन्दनवनस्य विहङ्गशक्रः // 24 // क्षितिखचितविसर्पद्ववैडूर्यरत्नप्रकरकिरणर्वादुर्विभाव्यस्थलीके। दिशि दिशि दमयन्त्यास्तत्र पश्यन् वयस्यास्त्रिदशमपि स मेने नामसौभाग्यसारम् // 25 // किमुत भुवनं बन्दीकत्तुं हरिण्मयशृङ्खलाः 1 किमुत जनतां मोहं नेतुं विषद्रुमवीरुधः / / नृपतिदुहितुः क्रीडालोलाः सखीवलोकयन्निति चिरतरं चिन्ताचक्रं चकार स विष्किरः // 26 // तत्र केलिकमलं भ्रमयन्तीं शैशवव्यतिकरं गमयन्तीम् / विश्वलोचनचयं रमयन्तीं पश्यति स्म सहसा दमयन्तीम् // 27 // रूपेण काश्चनसमुन्नतिमुद्वहन्ती तारागणैरिव वृता निकरैः सखीनाम् / सा तस्य सर्वसुरसिद्धगणाभिगम्या चित्तं चकर्ष कनकाचलचूलिकेव // 28 // तस्याः सकाशमधिगन्तुमसौ समन्तादाकाशवम गहनं प्रविगाहमानः / श्वेतं वितानमिव चारु चिरं वितन्वन् बभ्राम भूमिपतनाय पतङ्गशक्रः // 29 // इति श्रीमाणिक्यदेवसूरिकृते नलायने प्रथमे उत्पत्तिस्कन्धे एकादशः सर्गः // 11 // NSHI II II-IIIFIIIMSTE IAISHI AIII A 21 //
SR No.600422
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyadevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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