________________ नवमे सर्गः 4 धर्मदेशनान्तरे नलस्य पूर्वभवकथनम् / / // 18 // 19 -II ASIATI IAle सर्वसङ्गपरित्यागं प्रान्तकाले विधाय तौ / महाव्रतधरौ धीरौ शरीरं विससर्जतुः - // 18 // ततः सततसौख्याढये स्वर्गे साधर्म्यवाहिनि / उभौ हैमवते क्षेत्रे जातौ मिथुनधर्मिणौ // 19 // यत्र हेममयी भूमिः पक्षिणो मधुरस्वराः / अच्छशीतानि तोयानि वायवोऽतिसुखावहाः / // 20 // पर्यन्ते युग्ममेवैकं तदपत्यं प्रजायते / एकोनाशीत्यहः पश्चात् तद् मुक्ता यान्ति ते दिवम् // 21 // वस्त्रपात्रनिकेतनकाय्याभोज्यासनादिकम् / तेषां कल्पद्रुमा एव सर्व यच्छन्ति वाञ्छितम् // 22 // इति वर्षमयीं चर्या संपूर्णामनुभृय तौ / महेन्द्रत्रिदिवेऽभूतां देवी दाम्पत्यशालिनी . // 23 // क्षीरडिण्डीरनामानौ वहन्तौ तैजसं वपुः / परस्परमपि प्रेम प्रकाम भजतः स्म तौ // 24 // तत्र पल्याधिकं स्थित्वा सागरोपमसप्तकम् / च्युत्वा च नलभैम्याख्यौ सञ्जातौ दम्पती युवाम् // 25 // तदित्थं यत् त्वया पूर्व मुनिः सार्थाद् वियोजितः / तवापि प्रियया साकं तद्वियोग इहाभवत् // 26 // क्षमितः स त्वया तर्हि नाभविष्यद् मुनिर्यदि / व्यरमिष्यत् तदद्यापि तब किं विरहानलः ? // 27 / / यच्च धन्यभवे दधे छत्रं मुनिवरोपरि / एकच्छत्रमिदं राज्यं तव राजन् ! ततोऽभवत् . // 28 // यदर्हद्धिम्बभालेषु तिलकानि ततान च / सञ्जाता तेन देवीयं भास्वत्तिलकलाञ्छिता // 29 / / यच्च पश्चभवान् यावद् दाम्पत्यमजनिष्ट वाम् / तद्भवान्तरसंस्काराद् युवंयोः प्रीतिरद्भता // 30 // तद् वाक्यमिति शृण्वन्तावन्तश्चिन्तापरायणौ / उपपन्नवपुःकम्पो दम्पती तौ मुमूर्च्छतुः . // 31 // IASIAHINITIताल // 182 //