SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ II AISIIIIISite इह मे मुख्यदासीत्वं न तावत् कश्चिदंर्हति / युष्मदासेन संसक्ता यावदायाम्यहं पुनः केशिन्यथ स्वयं दत्त्वा दम्पत्योर्विजयाशिषम् / उत्पपात वलद्रीवं पश्यन्ती केशिनी भुवम् क्षणेन प्राप्य वैताढ्यं वेगेन जितवायुना / ददर्श स्वजनान् सर्वान् पितृश्वसुरवर्गयोः सर्वेषां पश्यतां तेषां हर्षाश्रुकणवर्षिणाम् / दत्त्वा गारुत्मतं वेषं निर्विषं विदधे पतिम् विषोपरागनिर्मुक्त तस्मिन् शीताताविव / उत्सवः कोऽप्यभृदुच्चैरन्तनगरमद्भूतः पृच्छथमाना च सा पत्या शृङ्गारप्राप्तिविस्तरम् / सर्वेषां शृण्वतां सर्व यथातथमचीकथत् विद्याधरसुतः श्रीमान् सुकृतज्ञो महाबलः / वीरश्चचाल तत्कालं नलसेवासमुत्सुक: पिता च श्वसुरश्चैव ज्ञातयः स्वस्य चापरे / वीरसेनसुतं द्रष्टुं सौहृदाय प्रतस्थिरे विकसितकनकारविन्दवृन्दद्युतिजितचण्डमरीचिभिर्विमानैः। दुततरमपि कुण्डिनं प्रपेदे तदथ नभश्ररराजनक्रवालम् विद्याधरेश्वरसमूहसमागमं द्राक् तं केशिनी स्वयमुपेत्य शशंस पूर्वम् / उत्कण्ठितः सकलराजकमध्यवर्ती तस्थौ नलोऽपि हि समाजयितुं सभायाम् तत्राययौ सपदि सोऽपि सपत्नहन्ता मन्त्रीश्वरः श्रुतनिधिः श्रुतशीलनामा / शक्तित्रयेण कलितो नृपतिर्विरेजे वीर: स तक्षक इव स्वफणात्रयेण // 41 // // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // // 47 // // 48 // // 49 // जा II I // 50 // // 51 // .
SR No.600422
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyadevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy