________________ पञ्चमे. स्कन्धे सर्गः१३ न // 125 // 151HI AIIANEI VIजाle तात! तातवदाप्तेन महता साधुनाऽमुना / एप प्राणप्रदानेन क्रीतोऽस्मि मरणावधि: // 31 // इति तद्वचसा राज्ञा भ्रातरं प्रतिपद्य माम् / सामन्तपदवीं दचा नादाद् गन्तुं क्वचिद् मम // 32 // तत्र लब्धप्रतिष्ठस्य प्रतिपच्या तया मम / रम्येषु राजकार्येषु मुख्यता सकलेष्वभूत् / // 33 // तस्य चास्ति महीभर्तुः कलाकुलनिकेतनम् / स्वर्णवाहोरवरजा सुता नाम्ना कलावती // 34 // चतुष्टयं समस्यानां यः कश्चित् पूरयिष्यति / स मत्प्रिय इति व्यकं तया देव ! प्रतिश्रुतम् तदर्थं तत्र सर्वेषु हूयमानेषु राजसु / मयकापि हि देवस्य श्रुतः प्रज्ञागुणो भृशम् // 36 // ततः सह मया देवमामन्त्रयितुमुच्चकैः / दशार्णपतिना दूतः प्रहितो गरुडाभिधः // 37 // अहं च सार्थमादाय स्वदेशोन्मुखमञ्जसा / समं तेन प्रपन्नोऽस्मि प्रमाण परतः प्रभुः // 38 // छायामात्रमिदं तस्या रूपमालेख्यगं तथा / प्ररोचनार्थ देवस्य समानीतं स्वयं मया // 39 // इति तन्मुखचन्द्रोत्थं वाक्पीयूषं निपीय सः। द्रुतं संभावयामास तं दूतं तत्पुरस्सरम् // 40 // कलां कीर्ति कलावत्या लावण्यं च विचिन्त्य तत् / तत्र स्वयम्बरे यातुं सज्जतां विदधेऽधिकम् // 41 // कथं मम समस्यानां शक्तिः स्यात् परिपूरणे ? / इति सारस्वतं मन्त्रं लक्षमेकं जजाप सः // 42 // तं शक्तिप्रवणं शुभ्रं चापचक्रव्यवस्थितम् / सानुस्वारं सरन् देवीं स ददर्श सरस्वतीम् // 43 // मुक्तावलिवलक्षण कमण्डलुजलेन तम् / अभिषिच्य जगन्माता सान्तर्धानं पुनर्ययौ। // 44 // दमयन्त्या आश्वास-. नाय भास्करशिष्येण कथिता कलावत्याः कथा॥ SIATIATI4 // 125||