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________________ पश्चमे स्कन्धे सर्गः 8 चारणश्रमणराश्वासिता दमयन्ती॥ // 114 // BIHII II ATHIla THII AISI NAI IST विचरन् वृक्षमालासु स्फुरदक्षिणलोचनः / क्षुपसेकजुषां मध्ये कन्यानां काञ्चिदुत्तमाम् // 22 // प्रच्छन्नः स्वेच्छया पश्यन्नित्थमन्तरचिन्तयत / अहो ! पुरा वनं धन्यं कन्या यत्रेयमीदृशी // 23 // युग्मम् / / श्रमोदककणाक्लिन्ना सावश्यायेव पद्मिनी / वल्कं शिथिलयत्येषा सख्या निविडसंयमम् // 24 // लक्ष्मणाऽपि शशी हृद्यः शैवलेनापि वारि तत् / वल्कलेनापि रम्याऽसौ किं न वस्तुषु मण्डनम् ? // 25 // यद् ममार्यस्य रागोऽस्यां क्षत्रिया तदियं ध्रुवम् / सन्दिग्धेषु पदार्थेषु प्रमाणं हि सतां मनः // 26 // सिञ्चन्ती चूतसंयुक्तां पुष्पिता माधवीमियम् / त्वमपीत्थं भवेत्युच्चैर्युक्तमुक्ता वयस्यया // 27 // द्रागम्भः संभ्रमभ्रान्तो भृङ्गोऽस्या वक्त्रवारिजे / धन्योऽधरदलं पीत्वा रौति कर्णान्तनेत्रयोः // 28 // विवृत्तभ्रान्तहस्ताग्रा लोलाक्षी धुन्वती शिरः / मधुव्रतनटेनेयं निःसङ्गीतं हि नर्तिता // 29 // रक्ष रक्षालि ! रोलम्बादिति व्यक्तार्तगीरियम् / त्रातुमाह्वय दुष्यन्तमिति सख्योपहस्यते // 30 // तदेवं तावदित्यन्तः स्फुटप्रकटमभ्यधात् / आदिष्टोऽस्मि वनं वातुं राज्ञाऽऽसन्नविहारिणा // 31 // तत् कोऽयं पौरवे पृथ्वीं पाति दुर्वृत्तघातिनि / अन्यायमतिमुग्धासु मुनिकन्यासु चेष्टते ? // 32 // आर्य! कश्चिद् न विनोऽत्र विघ्नकृद् वा तथाविधः / नवरं भ्रमराद् भ्रान्ता सखीयं नः शकुन्तला // 33 // इयं कुलपतेः पुत्री गालवस्य महात्मनः / प्रियंवदानुसूयाख्ये सख्यावावामुमे अपि / // 34 // सोमतीर्थप्रयातस्य तातस्यादेशतः सताम् / आतिथेयं करोत्येषा तदार्यातिथ्यमस्तु से // 35 // DISII AISFII AMERI AIIIIII TRIISISHIK // 114 //
SR No.600422
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyadevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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