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________________ सूरचंद्रा KrroॐॐArch कुंभनामनो मनुष्य घाडपाडु थइने उन्मत्तपणे कुद्या करे छे. // 27 // ___ स्त्रीश्च गाश्च हरत्येष करो हन्ति यतीनपि / चमूद्धो यमस्यापि दुर्गम दुर्गनश्चति // 28 // अर्थः-ते दुष्ट कुंभो स्त्रीओ तथा गायोने हरी जाय छे, मुनिओने पण मारी नाखे छे, अने ज्यारे तेने सैन्यथी रोकवामां आवे | 8| छे. त्यारे ते यमराजाने पण दुर्गम एवा किल्लामा भराइ बेसे छे. // 28 // तत्तदुर्ग महादुर्गवल्गनो वल्गुविक्रमः / गुप्तं प्रविश्य तं सुप्तं मत्पमोदाय दारय // 29 // अर्थः-माटे मने खुशी करवा माटे अति विकट स्फुर्तिवालो, तथा मनोहर पराक्रमवाळो एवो तु ते किल्लामा गुप्त रीते प्रवेश करीने तेने मृतो चीरी नाख? // 29 // श्त्यात्तवाचि भूपे गां चन्द्रोऽमुश्चत्सुधामयीम् / प्रारब्धतीर्थदर्ममहासागरजागराम् // 30 // अर्थः-राजाए एम कहेबाथी ते चंद्रकुमार तीर्थकर प्रभुना धर्मरूपी महासागरमाथी उछळेली अमृतमय वाणी बोलवा लाग्यो कै हन्तुं जन्तूनयुद्धेषु प्रत्याख्यानं प्रभो मम / युद्धेवपि परिश्रस्तानस्तानन्दाग्निरायुधान् // 31 // अर्थ:-हे स्वामी ! युद्ध नही करनारा पाणी भोने हणवानां मारे पचरूखाण छे, तेम युद्धमा पण भयभीत थइ नाशता, उत्साहरहित थयेला अने शस्त्रविनाना जीचोने पण (हणवानों पारे पञ्चख्खाण छे.) // 31 // इत्यस्य निश्चयं शौर्यमयं धर्ममयं च सः। नृपो मत्वा मनश्चके पदसंमदयोः पदम् // 32 // अर्थ:-एवीरीतनो तेनो शौर्यपणानो तथा धर्मनो निश्चय जाणीने ते राजाए पोतानां हृदयने अभिमान तथा हर्षना स्थानरूप कयु.
SR No.600421
Book TitleSurchandra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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