________________ -- सूरचंद्र चरित्र // 6 // 4-C 4-* - निवेश्य रहसि प्रेतहसितलपिताधरः / लपति स्म पतिः शुद्धविवेकममुमेकदा // 23 // अर्थ:-एक दिवसे प्रेमवाळां हास्यथी स्नान करावेल छे होठोने जेणे एवा ते राजाए निर्मल विवेकवाळा ते चंद्रकुमारने एकांते बेसाडी का के,॥ 23 // अपीन्द्रसमरे धीरा वीराः क्षीराभकोर्तयः / ये सन्ति मे तृगानीव त्वदृष्टिस्तानपीक्षते // 24 // ___अर्थः-इंद्रसाथेना युद्धमा पण जे मारा दुधसरखी उज्जवळ कीर्तिवाळा धैर्यवंत सुभटो छे, तेभोने पण तारी दृष्टि तणखलांना पेठे जोइ रही छे. // 24 // क्रियाकथितनिःशेषगुणस्य तय पौरुषम् / दृष्टिर्दिशत्यसौ धैर्यरसार्णवनवाब्जिनी // 25 // अर्थः-कार्यथी कही आपेल छे सर्व गुणो जेणे एगे जे तुं, तेनी धैर्यरूपी रसना महासागरमा नवी कमलिनी सरखी आ दृष्टि पराक्रमने सूचवी रही छे. // 25 // तबीरवारकोटीर वैरिशल्यं मम स्खलत् / तृर्णमाकर्ष हृदयादुदयादपि रोपितम् // 26 // अर्थ:-माटे हे शूरवीर शिरोमणि ! दाखल थवाथी खूचता एवा शत्रुरूपी शल्यने (मारा) हृदयमांथी उगतुंज तुं तरत (जडमूळ्थी) खेंची कहाड? // 26 // अन्यायमदिराकुम्भः कुम्भ इत्युग्रशुम्भनः / मन्न्यायवृक्षकरटी चरटीभूय वल्गति // 27 // अर्थः-अन्यायरूपी मद्यना घडासरखो, भयंकर विनाशवाळो, तथा मारा न्यायरूपी वृक्षने उखेडी नाखवाने हाथीसरखा - * -% % DROk